( L.S. Bisht ) क्रिकेट फिर कटघरे
मे है । आइपीएल स्पाट फिक्सिंग मामले में उच्चतम न्यायालय ने श्रीनिवासन के दामाद
मयप्पन की भूमिका किसी भेदिया जैसी बताई है । इसके अलावा मुदगल समिति की रिपोर्ट
मे नामजद खिलाड़ियों के नाम उजागर करने की अपील पर भी सुनवाई की मंजूरी दे दी है ।
देखना है पिटारे से क्या निकलता है । कुछ निकलता भी है कि नहीं । लेकिन इतना तय है
कि जो भी हो रहा है वह इस खेल के हित में
तो कतई नही है ।
देखा
जाए तो क्रिकेट में पैसे और ग्लैमर के बढते प्रभाव ने इस खेल की नींव को खोखला
करना शुरू कर दिया है | अब अस्सी
या नब्बे के दशक का क्रिकेट नही रहा जब पैसे को नही खेल को महत्व दिया जाता रहा और
खिलाडियों के लिए भी पैसा ही सबकुछ नही हुआ करता था |
आई पी
एल ने जिस तरह से इस खेल को करोडों के खेल मे तब्दील कर दिया उसने इस खेल के
स्वरूप को भी बहुत हद तक बदला है | इसने खिलाडियों की सोच में देश भावना को नहीं बल्कि
पैसे की भावना को जागृत करने का काम किया है | खिलाडियों का
सारा ध्यान क्रिकेट के इस बाजार पर केन्द्रित होकर रह गया है | अब इनका एकमात्र मकसद इसमें अच्छा प्रदर्शन कर अधिक से अधिक रकम पर हाथ
साफ़ करना है न कि क्रिकेट में देश का नाम ऊंचा करना | ग्लैमर
व विज्ञापनों के तडके ने इस क्रिकेट सर्कस को और भी जायकेदार बना दिया है |
देखने
वाली बात यह है कि खेल के इस संस्करण का मूल चरित्र ही ताबडतोड, बेफ़्रिक बल्लेबाजी है जिसमें
तकनीक की कोई खास जरूरत भी नहीं | छ्क्के और चौकों की बरसात
पैसे और विज्ञापनों की दुनिया का दरवाजा भी खोलती है और इस रंगीन दुनिया मे भला
कौन नही आना चाहेगा | सही मायनों में खेल की इस शैली ने
क्रिकेट की नींव को खोदने का काम बखूबी किया है | यह सोच
पाना ज्यादा मुश्किल नही कि आई पी एल खेलने वाले यह धुरंधर टेस्ट मैच कितना अच्छा
खेल पायेंगे जिसमे तकनीक, दमखम और धैर्य की असली परीक्षा
होती है |
यहां
गौरतलब यह भी है कि अब भारतीय टीम के चयन का आधार भी यही आई पी एल सर्कस बन गया है
| यहां जिस खिलाडी ने धूम मचा दी
उसका भारतीय टीम में भी चयन लगभग पक्का है | अभी हाल में
भारतीय टीम मे जितने नये चेहरे शामिल किए गये हैं वह सभी इस जमीन से ही आये हैं |
यह अब भारतीय क्रिकेट की जडों को खोखला करने लगा है | टेस्ट संस्करण तो भारी संकट मे है |
इस प्रारूप मे हमारी विश्व रैंकिंग लगातार गिरती जा रही है |
कुछ समय
पूर्व इस संबध मे इंग्लैंड के पूर्व कप्तान माइकल वान का कहना बिल्कुल सही लगता है
कि भारत के युवा क्रिकेटरों को आई पी एल के दायरे से बाहर निकल कर काउंटी क्रिकेट
खेलना चाहिए | उन्हें
लीग की कशिश और बेशुमार कमाई के दायरे से बाहर निकलकर बाहर की बडी दुनिया से
बाबस्ता होना पडेगा |
दूसरी
तरफ़ इंग्लैंड के ही पूर्व कप्तान स्टीवर्ट ने बाहरी पिचों पर जब भारतीय बल्लेबाजी
देखी तो तो जो बात कही वह कहीं से गलत नही
लगती कि फ़्लैचर भारतीय बल्लेबाजों के बदले बैटिंग नहीं कर सकते | वह अपना ज्ञान बांट सकते हैं |
लेकिन बैट बैट्समैन पकडते हैं और मैदान पर उन्हें ही खेलना होता है |
कोच खिलाडियों को तैयार करता है और उन्हें प्र्दर्शन करना होता है
इसमें कोई संदेह नही कि यह स्थिति बनी रहेगी जब तक हम अपने गिरेबां मे झांकने का
ईमानदार प्रयास नहीं करेंगे | हमें यह मानना ही पडेगा कि
हमारे खिलाडियों के लिए पैसा, विज्ञापन और ग्लैमर देश के
सम्मान से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है | इन्हें इस संबध मे
कडा संदेश देना ही होगा कि देश के सम्मान और भावनाओं से खिलवाड बर्दाश्त नहीं किया
जायेगा |
लेकिन जिस तरह से इस खेल मे पैसे का प्रभाव
बढा है लगता नही कि भारतीय क्रिकेट का इससे कोई भला होगा बल्कि सट्टेबाजी और
फिक्सिंग का ग्रहण इसे नीचे ही ले जायेगा । श्रीनिवासन जैसे लोग अपने फायदे के
लिये इस खेल को पैसे के एक सर्कस मे बदल कर ऱख देंगे । अदालत के माध्यम से ही सही
इस खेल
का और इसके अंदर की दुनिया का पूरा पोस्टमार्टम होना जरूरी है । अगर समय रहते य़ह न
किया
गया तो देश मे न तो इस खेल की और न ही इसके खिलाडियों की कोई साख रह जायेगी ।
अब समय
आ गया है कि खेल मे आ रही बुराइयों पर गंभीरता से सोचा जाए | हमें यह भी समझना होगा कि टीम के लिए खिलाडियों के चयन का आधार आई पी
एल तो कतई नही हो सकता | इसके लिए एक निष्पक्ष नीति बनानी
होगी जो सभी प्रकार के दबाबों से मुक्त हो | अगर ठोस कदमों
की पहल न की गई तो भारतीय क्रिकेट अपनी ही बुराईयों के भार से अपनी चमक खो देगा |
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