शुक्रवार, 26 नवंबर 2021

दलगत राजनीति का बदलता चेहरा

 



भारतीय राजनीति  का चेहरा  अब बडी तेजी से बदल रहा है   इस बात की संभावना कहीं नही दिखती कि यह मूल्यों की राजनीति के अपने पुराने दौर की तरफ वापसी कर सकेगी । दर-असल वोट के माध्यम से जनसमर्थन की अभिव्यक्ति के महत्व ने ही इसे इस स्थिति मे ला खडा किया है । आज हालात यह हैं कि वोट के लिये राष्ट्र हितों की उपेक्षा करने मे भी किसी को कोई गुरेज नही | मौजूदा किसान आंदोलन को लेकर हुई दलगत राजनीति ने जिस तरह से राष्ट्र हितों को नजर-अंदाज कर विशुद्द रूप से वोट की राजनीति को प्राथमिकता दी उसने भविष्य की राजनीति के सकेत साफ़ तौर पर दे दिये हैं |

      सत्ता से दूर राजनीतिक दल जिन्हें  लोकतंत्र मे विरोधी की भूमिका का निर्वाह करना होता है , अब सिर्फ़ कुर्सी झपटने की राजनीति को अंजाम देने मे लगे हैं | यही कारण है कि अब  विरोध की राजनीति के बीच सही नीतियों को समर्थन देने की परंपरा खत्म होती जा रही है | सत्ता पार्टी को येन केन  सत्ता से हटा स्वंय सत्तारूढ होना ही एकमात्र ध्येय बन गया है | इसके लिये किसी हद तक भी जाने मे कोई संकोच दिखाई नही देता | विरोधी राजनीति का यही  चेहरा किसान आंदोलन के चेहरे को भी भदेस बना रहा है |

      क्या यह जानना अफसोसजनक नही होगा कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी अब  कन्हैया कुमार को अपना पोस्टर ब्वाय बनाने जा रही है । रोहित वेमुला की आत्महत्या की तस्वीरें भी कांग्रेस के लिए वोट मांगती दिखाई देंगी । कल अगर उमर खालिद का चेहरा भी साम्यवादी दलों के चुनावी पोस्टरों मे दिखाई दे तो कोई आश्चर्य नही ।

      वोट राजनीति के इस घिनौने चेहरे को क्या अब भारतीय जनमानस की बदलती सोच का एक संकेत मान लिया जाए या फिर खलनायकों को राजनीति मे महिमा मंडित कर हीरो बनाने की एक घृणित राजनीतिक सोच । क्या अब भारतीय चुनावी राजनीति का दर्शन कुछ इस तरह से बदलने जा रहा है जिसमे नैतिक मूल्यों का कोई स्थान नही |

। युवाओं के लिए वह विद्रोही चरित्र आदर्श हैं जो पूरी मुखरता के साथ शासन -सत्ता के विरूध्द किसी भी  सीमा तक जा सकने का साहस रखते हैं । इसमे कोई फर्क नही पडता कि वह पारंपरिक मूल्यों व आदर्शों के विरूध्द है या फिर देश प्रेम की अवधारणा को ही खारिज कर रहे हैं ।

         बहुत संभव है कि गत आम चुनावों मे जिस तरह से मोदी एक चमत्कारिक छवि के रूप मे पूरे देश को अपने मोह पाश मे बांध एक अकल्पनीय चुनावी जीत के नायक बने उसने गैर भाजपा राजनीतिक दलों मे राजनीतिक असुरक्षा की भावना को पैदा करने मे अहम भूमिका निभाई हो । बहरहाल  कारण कूछ भी हों  लेकिन राष्ट्र हितों की कीमत पर सिर्फ़ सत्ता के लिये वोट की राजनीति देश के हित मे तो कतइ नही है |

 

              

 

गुरुवार, 18 नवंबर 2021

लौटना ही होगा सागर की ओर


 

यह बात तय हो चुकी है कि बहुत समय पहले धुंधले अतीत मे जल के महापात्र सागर मे तब्दील हुए | फ़िर इनमे पाए जाने वाले तत्वों –क्षार से प्रोटोप्लाजम बना और इससे जीव का जन्म हुआ | धीरे-धीरे इस जीव पदार्थ ने किसी तरह क्लोरोफ़िल जैसी महत्वपूर्ण चीज अपने अंदर पैदा कर ली | फ़िर फ़ोटो संश्लेषण के ज्ररिए जड पदार्थों से जीवन तत्वों का निर्माण करना सीख लिया | दूसरी ओर इसी जीव पदार्थ की दूसरी जाति ने क्लोरोफ़िल वाले जीवित पदार्थों को अपने जीवन का आधार बनाना सीखा | इस तरह जीवन की शुरूआत हुई |

     समय के साथ जीवन के विकास की यात्रा भी बढती गई और यह जीवन जटिल होता गया| एक कोशिय जीवों से तब ऐसे जीवों का विकास हुआ जो बहुकोशिय थे | इन्मे अपने ही जैसे दूसरे जीवों को पैदा करने हेतु अलग-अलग अंग थे | इनमे अनेक जीव ऐसे थे जो पृथ्वी और सागर दोनो जगह आसानी से रह सकते थे | जीवन की गाडी आगे बढ्ती गई और कुछ जीव जन्तु सागरों मे लौट आए | कुछ स्तनपायी जीवों ने अपने मस्तिष्क का असाधारण विकास कर लिया और इस तरह मनुष्य के पहले पूर्वजों का स्वरूप सामने आया | वनस्पतियों का भी असाधरण विकास हुआ और कई किस्म के पेड-पौधे, झाड-घास आदि के जंगल उग आए |

     हमारे अवतार्वाद की धारणा भी इस मत कि पुष्टि करती है | जीव का जन्म सागर से हुआ और मत्स्य अवतार इसी का प्रतीक है | दूसरे पहलू की तरफ़ देखें तो पृथ्वी एक जलीय ग्रह है | इसका तीन चौथाई भाग जलमय है | पृथ्वी की तरह सागरों मे भी असंख्य जीव पलते हैं | सागर के एक चुल्लू भर पानी मे करोडों नन्हें पौधे और जीव दिखाई दे सकते हैं | यही वह जीवित पदार्थ हैं जिन पर सारे जीवन की नींव रखी हुई है | इंसान भी तो इन्हीं सागरों की संतान है |

     जल के बिना जीवन असंभव है | सागर मंथन की कथा इसी सच्चाई को मिथक रूप से प्रकट करती है | यही नही, सौर परिवार मे पृथ्वी ही अकेला जलीय ग्रह है | इस जल से ही यहां जीवन संभव हो सका है | दूसरे ग्रह तो जीव जन्तु विहीन हैं |

     इस तरह महासागरों की इस जन्म कहानी से यह बात तो सिध्द हो ही जाती है कि इनकी उम्र पृथ्वी से ज्यादा तो है ही नही | पृथ्वी की उम्र ल्गभग 4 अरब वर्ष मानी जाती है और इस तरह महा सागरों की उम्र इससे कम मानी जा सकती है | हिन्द महासागर इनमे कुछ नया है |इसका जन्म आज से 18 करोड वर्ष पहले महादीपीय अपसरण का परिणाम माना जाता है |

     कभी भारत और आष्ट्रेलिया अंटार्कटिका महाद्वीप से जुडे थे | कुछ भूगर्भीय हलचलों के कारण भारत गौंडवाना लैंड से टूट कर 3 इंच प्रतिवर्ष की गति से उत्तर पूर्व की ओर खिसकते हुये दूर चला गया | इसी तरह लगभग 2 करोड वर्ष पूर्व अरब देश अफ़्रीका से अलग होकर पूर्व की ओर खिसक गए जिससे लाल सागर और अदन की खाडी मे हिंद महासागर का जन्म हुआ |

     अतीत मे यह महासागर जीवों के जीवन की धूरी थे | अगर यह कहा जाए कि धरती का जीवन इन्ही पर आधारित था तो गलत न होगा | गौरतलब यह भी यह है कि आज भी सागर के किनारे रहने वाले लोगों का जीवन बहुत हद तक इन पर ही निर्भर है | इनके भोजन का मुख्य स्त्रोत सागर ही हैं |  आज जबकि पृथ्वी के विभिन्न स्त्रोत और संसाधन लगातार कम होते जा रहे हैं हमे फ़िर अपने सागरों की याद आने लगी है | सागरों मे वे सभी चीजें मिलती हैं जो हमारी पृथ्वी मे हैं | अब तो यह बात भी सिध्द हो चुकी है कि सागर के विभिन्न संसाधनों के विवेक संगत उपयोग से लोगों का जीवन स्तर सुधारा जा सकता है | लेकिन यही तभी संभव है जब हम सागर की संपदा का उपयोग समझदारी से करें | आपसी होड इस संपदा को बर्बाद ही करेगी | साथ ही हमे अपने सागरों को तरह तरह के प्र्योग करने की प्रयोगशाला बनाने से बचना होगा | आगे चल कर इसके दुष्परिणाम हमे ही भुगतने होंगे |