(एल. एस. बिष्ट ) - क्रिकेट का महाकुंभ दस्तक दे रहा है लेकिन इस बार कोई खास उत्तेजना और उत्साह दिखाई नही दे रहा । इसका कारण दिल्ली का हाई प्रोफाइल चुनाव भी हो सकता है और भारतीय क्रिकेट टीम की आष्ट्रेलिया मे हुई दुर्गत से उपजी निराशा भी । बहुत संभव है संतुष्टि का भाव भी एक कारण हो कि 2011 का वर्ल्ड कप तो जीत ही चुके हैं । लेकिन इतना अवश्य है कि 14 फरबरी से हो रहे इस क्रिकेट कुंभ को लेकर वह बात दिखाई नही दे रही ।
तमाम संभावित कारणों मे से संभवत: सबसे बडा कारण इस बार भारत की दावेदारी का कमजोर दिखाई देना भी हो सकता है ।वैसे तो क्रिकेट बोर्ड और कुछ भूतपूर्व खिलाडी बडे बडे दावे कर रहे हैं लेकिन आम भारतीय क्रिकेट प्रेमी इन दावों मे जरा भी सच्चाई नही देख पा रहा । सट्टा बाजार के संकेत भी भारत के पक्ष मे नही दिखाई दे रहे हैं । यानी कुल मिला कर एक निराशा का माहौल है ।
क्रिकेट के इस सबसे बडे उत्सव मे भारतीय संभावनाओं को तलाशने का प्रयास करें तो उम्मीदों का कोई आधार नजर नही आ रहा सिवाय इसके कि भारत इस खेल का गत विजेता है । धोनी कोई चमत्कार दिखा सकेंगे इसकी संभावना भी कम ही दिखाई देती है । इसका एक बडा कारण है कि 2011 के वर्ल्ड कप मे मिली जीत के कारणों को सही तरीके से समझा ही नही गया । धोनी की कप्तानी और युवा चेहरों को जिस तरह से महिमा मंडित किया गया उसने सच को कहीं पीछे धकेल दिया था ।
देखा जाए तो पिछ्ले वर्ल्ड कप की जीत का एक बडा कारण वर्ल्ड कप का भारतीय उपमहादीप मे होना था । फाइनल भी मुबंई के वानखेडे स्टेडियम मे खेला गया था और इसका लाभ भारतीय टीम को मिला । वैसे कमोवेश इस महादीप मे होने का भरपूर लाभ इस क्षेत्र की सभी टीमों को मिला था । यही कारण रहा कि अंतिम चार मे सिर्फ न्यूजीलेंड को छोड कर बाकी तीन टीमें इस महादीप की ही रहीं ।
यहां की पिचें स्पिन गेंदबाजी के अनुकूल रही हैं । जिसमें भारत का पक्ष हमेशा से मजबूत रहा है । दूसरी तरफ क्रिकेट की दूसरी दिग्गज टीमों की ताकत हमेशा से उनकी तेज गेंदबाजी रही है और यहां की बेजान धीमी पिचों पर उनके तेज गेंदबाज प्रभावहीन साबित हुए । अपनी जमीन का भरपूर लाभ भारतीय टीम को मिला जिसने कप तक पहुंचने का रास्ता आसान कर दिया और अंतत: भारतीय टीम विजयी हुई ।
एक् दूसरा बडा कारण जिसको नजरअंदाज कर दिया गया या फिर खेल राजनीति के चलते श्रेय देना ही उचित नही समझा वह् था वरिष्ठ खिलाडियों का योगदान । सचिन, सहवाग, युवराज , गौतम गंभीर, मुनाफपटेल, हरभजन व जहीर खान जैसे वरिष्ठ खिलाडियों का बहुत अच्छा प्रदर्शन रहा था । युवराज सिंह को तो " प्लेयर आफ द टुर्नामंट " होने का सम्मांन भी मिला था । आज इस वर्ल्ड कप मे इनमें से कोई भी खिलाडी टीम मे सम्मलित नही है ।
अब यदि 2015 के इस खेल महाकुंभ के लिए चुने गये 15 खिलाडियों पर नजर डालें तो सभी युवा चेहरे ही दिखाई देते हैं सिवाय धोनी के । इस दल मे कोहली, शेखर धवन, रोहित शर्मा, रहाने, रिध्दिमान साह, बिन्नी, भुवनेश्वर सिंह, उमेश यादव, अमित मिश्रा व मुरली विजय जैसे युवा चेहरे हैं । अभी हाल मे आष्ट्रेलिया व इग्लैंड मे इन खिलाडियों का शर्मनाक प्रदर्शन किसी से छिपा नहीं है । इस युवा टीम को एक भी जीत नसीब नही हुई । यहां तक कि त्रिकोणीय सीरीज मे यह फाइनल तक न पहुंच सके । टेस्ट टीम के रूप मे तो यह युवा भारतीय टीम अपनी चमक पहले ही खो चुकी है ।
भारतीय गेंदबाजी और बल्लेबाजी की धार को परखने का प्रयास करें तो यहां भी निराशा ही दिखती है । इस भारतीय टीम मे एक भी मैच जिताऊ गेंदबाज नही दिखाई देता । गंभीरता इस बात से ही समझ मे आ जाती है कि आज एक दिनी प्रारूप मे दुनिया के टाप दस गेंदबाजों मे एक भी भारतीय गेंदबाज शामिल नही है । जब कि पाकिस्तान के सईद अजमल, बांग्ला देश के शाकिब अली हसन दस गेंदबाजों मे शामिल हैं । ईशांत शर्मा, भुवनेश्वर कुमार व उमेश यादव जिन पर तेज गेंदबाजी का दारोमदार रहेगा, बेरंग नजर आ रहे हैं । महत्वपूर्ण आखिरी ओवरों के लिए जहीर खान जैसा गेंदबाज टीम मे नही दिखाई देता । रविन्द्र जडेजा व अश्वनि आष्ट्रेलिया - न्यूजीलैंड की तेज पिचों मे कोई चमत्कार कर सकेंगे, संभव नही लगता ।
अब रही बल्लेबाजी की बात तो अपनी मजबूत बल्लेबाजी के लिए जाने जानी वाली भारतीय टीम अब इस पहलू से भी कमजोर दिखाई देने लगी है । एक दिनी प्रारूप मे विराट कोहली के अलावा किसी भी बल्लेबाज का प्रदर्शन विश्वसनीय नही है । दवाब मे भारतीय मजबूत बल्लेबाजी अब ताश के पत्तों की तरह बिखर जाती है ।
खेल के इस प्रारूप मे हरफनमौला खिलाडियों का विशेष महत्व रहता है । इस द्र्ष्टि से भी भारतीय टीम बेहद गरीब नजर आती है । टाप दस मे सिर्फ रविन्द्र जडेजा को स्थान मिला है जबकि आष्ट्रेलिया , पाकिस्तान व श्रीलंका प्र्त्येक के दो दो खिलाडी इस सूची मे शामिल हैं । गौरतलब है कि हरफनमौना खिलाडी निर्णायक भूमिका अदा करते हैं ।
यानी कुल मिला कर इस क्रिकेट महाकुंभ मे भारतीय चुनौती दमदार नजर नही आती । चमत्कारों के बादशाह धोनी कोई चमत्कार कर बैठे तो दीगर बात है । वैसे टीम को इस कमजोर स्थिति मे लाने का श्रेय भी धोनी को ही जाता है । दर-असल 2011 के वर्ल्ड कप के बाद धोनी ने मानो प्रतिज्ञा ले ली हो कि 2015 वर्ल्ड कप को सीनियर विहीन करना है । उसमे वह सफल भी हुए । कम से कम युवराज सिंह, गौतम गंभीर, हरभजन व जहीर खान को तो शामिल किया ही जा सकता था । तब यह भारतीय टीम एक संतुलित टीम दिखाई देती । यह खिलाडी इतने बूढे भी नही हैं कि इस खेल कुंभ मे उनके हाथ पैर कांपते दिखाई देते । इनसे भी उम्र दराज खिलाडी दूसरी टीमों मे आज भी खेल रहे हैं । यह तो सिर्फ धोनी की जिद और अहम का नतीजा है ।
कुल मिला कर देखें तो बेशक् भारत पूल ' बी ' मे आयरलैंड, वेस्ट इंडीज, जिम्वाबे व अरब अमीरात जैसी कमजोर टीमों को हरा कर दूसरे चक्र मे पहुंच जाए लेकिन जब मुकाबला पूल ' ए ' की आष्ट्रेलिया ,इंग्लैड व न्यूजीलैंड् जैसी टीमों से होगा तो अंतिम चार मे पहुंचने का सफर बेहद कठिन होगा । वैसे भारतीय टीम की पहली परीक्षा ही 15 फरबरी को एडिलेट मे होगी जहां उसे पाकिस्तान से खेलना होगा ।
29 मार्च को मेलबोर्न क्रिकेट ग्राउंड मे होने वाले फाइनल मैच की एक टीम भारत की होगी या नही, यह तो समय ही बताऐगा लेकिन सिर्फ युवा और अनुभवहीन खिलाडियों के बल पर यहां तक पहुंचने का सफर कठिन जरूर दिखाई दे रहा है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें