पुस्तकों का इंसानी
जिंदगी से गहरा रिश्ता रहा है | प्राचीन इतिहास पर नजर डालें तो इंसान का अक्षरों
से किसी न किसी रूप मे सबंध हमेशा रहा है और यही कारण है प्राचीन सभ्भयताओं की खोज
मे हमें शब्दों का अस्तित्व हमेशा मिलता है |आज भी हम पुस्तकों को इंसान का पथ प्रदर्शक
मानते हैं |
राजस्थान के अजमेर मे जन्मे व
मनीला-फ़िलिपींस को अपने कर्म भूमि बनाने वाले श्री हीरो वाधवानी जी की नवीनतम
पुस्तक “ मनोहर सूक्तियां “ एक ऐसी ही बहुमूल्य पुस्तक है जो हमें जीवन की सही राह
दिखाती है | सूक्तियों के रूप मे इस पुस्तक मे वह अमृत है जिसका स्वाद इसे पढने के
बाद ही समझा जा सकता है | यह पुस्तक सही अर्थों मे अनमोल मोतियों की एक खूबसूरत
माला है जिसमे हर मोती की अपनी चमक है | एक ऐसी चमक जिसकी रोशनी मे आप जीवन की सही
राह देख सकते हैं |
वाधवानी जी ने संभवत: अपने रचना कर्म के लिये
साहित्य की इस विधा का चयन बहुत सोच समझ कर किया होगा | कहानी, कविता जैसी विधाओं
से हट कर सूक्तियों व विचारों का लेखन एक अलग किस्म का रचनाकर्म है | लेकिन कोई
सदेह नही कि जनकल्याण की द्र्ष्टि से यह सबसे अधिक उपयोगी विधा है | जीवन के कठिन
दिनों व मानसिक अवसाद के क्षणों मे यह पुस्तक आपको उजाले और उम्मीद की राह दिखाती
है क्योंकि इसमे जीवन का सार है, क्पोल कल्पित कथा नही | इसमे लेखक वाधवानी जी के जीवन का गहन अनुभव व
मौलिक प्रतिभा का बेहतरीन निष्कर्ष है |
इस पुस्तक के प्रथम पृष्ठ मे छपी सूक्तियों
से ही पुस्तक की उपयोगिता का आभास हो जाता है | प्रत्येक सुक्ति लाखों रूपयों से
भी ज्यादा मूल्यवान है | कुछ सुक्तियां इस प्रकार हैं –
·
असंयमी
इंसान को शैतान शीघ्र वश मे कर लेता है |
·
ईश्वर
ने योग्य समझ कर बुजुर्गों और बरगद के पेडों को अधिक समय दिया है, इनका सम्मान करो
|
·
रेलगाडी
पटरी पर होगी तो हजारों मील चलेगी, पटरी से उतर ग-ई तो एक इंच भी नही चलेगी |
·
मां के
गर्भ मे रहने का किराया जीवन भर कमाए गए धन का दोगुना है |
·
गरीबी
केवल त्योहार पर नही, रोजाना तंग करती है |
·
मोतियों
से मिल कर धागा भी मूल्यवान हो जाता है |
ऐसी ही
तमाम सूक्तियां जो जीवन के विभिन्न पहलुओं से जुडी हैं और अधंकार मे सही दिशा का
भान कराती हैं | जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नही जिसके बारे मे पुस्तक मे उल्लेख न हो
|
पुस्तक की सुंदर कंपोजिंग, मजबूत बाइडिंग,
आकर्षक कवर तथा त्रुटिहीन छपाई इस पर चार चांद लगाती हैं |
यह पुस्तक हर उम्र के लोगों के पाठकों के
लिये उपयोगी है और इस दौर के हमारे बच्चों के लिये तो प्रकाशपुंज के समान है |
उनके पास रामायण, गीता व वेदों के अध्धयन का न तो समय है और न ही सामाजिक परिवेश
लेकिन एक या दो पंक्ति के यह अमृत विचार उन्हें जीवन मे अच्छे बुरे व नैतिक-अनैतिक
का विवेक देने मे समर्थ हैं |
कारोबार के संबध मे अपनी भूमि से दूर रहने के बाबजूद मनीला फ़िलिपींस
मे रहते हुए हिंदी की इस विधा मे , अपनी जमीन की सुगंध व
मूल्यों को लिए ऐसी उपयोगी पुस्तक लिखने के लिये श्री वाधवानी जी निसंदेह साधुवाद व शुभकामनाओं के पात्र हैं |
पुस्तक –
मनोहर सूक्तियां
लेखक –
हीरो वाधवानी
के बी
एस प्रकाशन, ई मेल - kbsprakashan.@gmail.com
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