सोमवार, 18 जनवरी 2016

भारतीय जनमानस की यह कैसी सोच है

रविवार को छ्त्रसाल स्टेडियम मे आड-ईवन नियम की सफलता पर केजरीवाल भाषण दे रहे थे तभी एक युवती भीड से निकल कर आई और मंच के नीचे से ही उन पर स्याही फेंक दी । ऐसा पहली बार नही हुआ । पहले भी स्याही फेंकने के मामले सामने आये हैं । यहां गौरतलब यह भी है राजनीति मे आम आदमी पार्टी के उदय के साथ ही ऐसी घटनाएं होती रही हैं । इसका दुखद पहलू यह भी है कि राजनीतिक विरोध की इस शैली का जो विरोध होना चाहिए वह कहीं दिखाई नही देता । बल्कि इसे एक मनोरंजक घटना के तौर मे ले लिया जाता है । इस घटना को गहराई से देखें तो कई और सवाल भी उठते हैं ।



क्या बेचारे केजरीवाल जी ने ही पिछ्ले जन्म मे इतने खराब कर्म किए थे कि इस जन्म मे भुगतना पड रहा है भारतीय राजनीति मे पहले भी और आज भी जाने कितने भ्र्ष्ट, चरित्रहीन, पाखंडी और अपराधी नेता रहे हैं ऐसे भी जिन्होने जानवर के चारे से लेकर कोयला तक खाने मे कोई परहेज नही किया चरित्र इतना महान कि अपने से आधी उम्र की लडकियों को गर्भवती बनाने मे भी पीछे नही रहे जब मामला सामने आया तो उनकी हत्या करवाने मे भी कोई संकोच नही

संसद के मंदिर मे मोबाइल मे पोर्न देखने मे भी कोई संस्कार आडे नही आए यही नही ह्त्या कराने मे भी एक से बढ कर रिकार्डधारी नेता भारतीय राजनीति के क्षितिज मे हमेशा चमकते रहे और आज भी चमक रहे हैं अपने ही चुनावी घोषणा पत्रों को सत्ता मिल जाने के बाद कूडे की टोकरी मे फेक , सत्ता सुख भोगने वाले कल भी थे और आज भी ।दूसरे राज्यों मे भी कोई दूध के धुले नही हैं और ही वहां रामराज है लेकिन इतनी गालियां, इतनी आलोचना तो शायद ही किसी को सुननी पडी हो जितनी केजरीवाल जी को

इतना ही नही, भारतीय राजनीति मे नेताओं की हनक, रूतबा और सुरक्षा इतनी कि मुख्यमंत्री तो बहुत दूर , पिद्दी भर के किसी मंत्री के आस-पास भी आम आदमी पहुंच नही पाता ।इनके सुरक्षाकर्मियों की मार खानी पडे इतना ही बहुत है कभी कधार तो इनके काफिले सडक चलते आम आदमी को कुचलते हुए आगे बढ जाते हैं ।और कोई कुछ नही कर पाता लेकिन यहां तो एक मुख्यमंत्री के मुंह मे स्याही फेंक कर चलते बन रहे हैं

यहां अजीब विरोधाभास दिखाई देता है कहीं तो इतना आक्रामक और असहनशील राजनीतिक विरोध और कही मानो सबकुछ स्वीकार कर लिया गया हो, कोई शिकायत नही कहीं ऐसा तो नही कि हम एक विशेष किस्म के नेताओं और राजनीतिक शैली के ही अभ्यस्त हो चले हैं । इससे अलग को हम स्वीकार नही कर पाते या फिर ' खराब ' लोगों से हम स्वंय सीधे रहते हैं और वहां कुछ कहने और करने का हमारा साहस नही होता लेकिन जिसमे थोडी बहुत अच्छाई हो उसके लिए स्वंय ' शेर ' बन जाते हैं । बहरहाल इस बिंदु पर आकर सोचने के लिए मजबूर हो जाना पडता है कि भारतीय जनमानस का यह कैसा चरित्र है और क्यों ?

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