रविवार
को छ्त्रसाल स्टेडियम मे
आड-ईवन
नियम की सफलता पर केजरीवाल
भाषण दे रहे थे तभी एक युवती
भीड से निकल कर आई और मंच के
नीचे से ही उन पर स्याही फेंक
दी । ऐसा पहली बार नही हुआ ।
पहले भी स्याही फेंकने के
मामले सामने आये हैं । यहां
गौरतलब यह भी है राजनीति मे
आम आदमी पार्टी के उदय के साथ
ही ऐसी घटनाएं होती रही हैं
। इसका दुखद पहलू यह भी है कि
राजनीतिक विरोध की इस शैली
का जो विरोध होना चाहिए वह
कहीं दिखाई नही देता । बल्कि
इसे एक मनोरंजक घटना के तौर
मे ले लिया जाता है । इस घटना
को गहराई से देखें तो कई और
सवाल भी उठते हैं ।
क्या
बेचारे
केजरीवाल जी
ने ही
पिछ्ले
जन्म मे
इतने
खराब कर्म
किए थे
कि इस
जन्म मे
भुगतना पड
रहा है
। भारतीय
राजनीति मे
पहले भी
और आज
भी न
जाने कितने
भ्र्ष्ट,
चरित्रहीन,
पाखंडी
और अपराधी
नेता रहे
हैं ।
ऐसे भी
जिन्होने
जानवर के
चारे से
लेकर कोयला
तक खाने
मे कोई
परहेज नही
किया ।
चरित्र इतना
महान कि
अपने से
आधी उम्र
की लडकियों
को गर्भवती
बनाने मे
भी पीछे
नही रहे
। जब
मामला सामने
आया तो
उनकी हत्या
करवाने मे
भी कोई
संकोच नही
।
संसद
के मंदिर
मे मोबाइल
मे पोर्न
देखने मे
भी कोई
संस्कार आडे
नही आए
। यही
नही ह्त्या
कराने मे
भी एक
से बढ
कर रिकार्डधारी
नेता भारतीय
राजनीति के
क्षितिज मे
हमेशा चमकते
रहे और
आज भी
चमक रहे
हैं ।
अपने ही
चुनावी घोषणा
पत्रों को
सत्ता मिल
जाने के
बाद कूडे
की टोकरी
मे फेक
,
सत्ता
सुख भोगने
वाले कल
भी थे
और आज
भी ।दूसरे
राज्यों मे
भी कोई
दूध के
धुले नही
हैं और
न ही
वहां रामराज
है ।
लेकिन इतनी
गालियां,
इतनी
आलोचना तो
शायद ही
किसी को
सुननी पडी
हो जितनी
केजरीवाल जी
को ।
इतना
ही नही,
भारतीय
राजनीति मे
नेताओं की
हनक,
रूतबा
और सुरक्षा
इतनी कि
मुख्यमंत्री
तो बहुत
दूर ,
पिद्दी
भर के
किसी मंत्री
के आस-पास
भी आम
आदमी पहुंच
नही पाता
।इनके
सुरक्षाकर्मियों
की मार
न खानी
पडे इतना
ही बहुत
है ।
कभी कधार
तो इनके
काफिले सडक
चलते आम
आदमी को
कुचलते हुए
आगे बढ
जाते हैं
।और कोई
कुछ नही
कर पाता
। लेकिन
यहां तो
एक मुख्यमंत्री
के मुंह
मे स्याही
फेंक कर
चलते बन
रहे हैं
।
यहां
अजीब
विरोधाभास दिखाई
देता है
। कहीं
तो इतना
आक्रामक और
असहनशील
राजनीतिक
विरोध और
कही मानो
सबकुछ स्वीकार
कर लिया
गया हो,
कोई
शिकायत नही
। कहीं
ऐसा तो नही कि हम एक विशेष किस्म
के नेताओं और राजनीतिक शैली
के ही अभ्यस्त हो चले हैं ।
इससे अलग को हम स्वीकार नही
कर पाते या फिर '
खराब
'
लोगों
से हम स्वंय सीधे रहते हैं और
वहां कुछ कहने और करने का हमारा
साहस नही होता लेकिन जिसमे
थोडी बहुत अच्छाई हो उसके लिए
स्वंय '
शेर
'
बन
जाते हैं । बहरहाल
इस बिंदु
पर आकर
सोचने के
लिए मजबूर
हो जाना
पडता है कि
भारतीय जनमानस
का यह
कैसा चरित्र
है और
क्यों ?
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