कुछ
समय बाद पठांनकोट आतंकी हमले
की पूरी जांच रिपोर्ट
सामने आएगी । लेकिन
शुरूआती संकेतों से ऐसा लग
रहा है कि इसमे कहीं न कहीं
दाल मे कुछ काला जरूर है ।
वैसे भी देश मे हो रहे आतंकी
हमले बिना स्थानीय सहायता के
संभव नही हैं । गत कई हमलों मे
यह बात सामने भी आई है । वैसे
भी समय समय पर दुश्मनों को
महत्वपूर्ण सूचनाएं भेजने
के आरोप मे कई लोग पकडे भी जाते
रहे हैं ।
पहले
पहल किसी मुस्लिम नाम के
ब्यक्ति की बात् सामने आते
ही पूरे देश मे एक अलग सी
प्रतिक्रिया होती रही है लेकिन
इधर कुछ राष्ट्रद्रोही मामलों
मे ऐसे नाम भी सामने आए हैं
जिनसे यह बात साफ हो चली है कि
राष्ट्रविरोधी कार्यों का
धर्मविशेष के लोगों से ही संबध
नही है बल्कि लालच किसी को भी
राष्ट्रद्रोही बना सकता है
। अभी हाल मे राजस्थान मे एक
पटवारी को देश की गोपनीय सूचनाएं
पाकिस्तान को भेजने के आरोप
मे गिरफ्तार किया गया । वह
सीमा से लगे भारतीय सैन्य
ठिकानों की सामरिक जानकारी
पाकिस्तान को भेजता रहा है ।
इसके पूर्व सेना के कुछ अधिकारियों
को भी इसी आरोप मे गिरफ्तार
किया गया था । सबसे चिंताजनक
बात जो सामने आई है वह यह कि
कई भूतपूर्व सैनिकों का इस्तेमाल
आतंकी व पाक खुफिया एजेंसी
करती रही हैं । चंद रूपयों के
लिए यह भूतपूर्व सैनिक व अधिकारी
अत्यंत महत्वपूर्ण सूचनाएं
उपलब्ध कराते रहे हैं । गौरतलब
है कि पकडे गये लोगों मे हिंदु
भी हैं और मुस्लिम भी । सवाल
उठता है ऐसा क्यों हो रहा है
?
दर-असल
आजादी के बाद हमारी राष्ट्रीय
नीतियों मे राष्ट्रनिर्माण
व चारित्रिक गुणों को विकसित
करने की सोच का नितांत अभाव
रहा है । बल्कि जाने अनजाने
हमने एक आत्मकेन्द्रित समाज
का ताना बाना जरूर बुन लिया
जिसके तहत एकमात्र उद्देश्य
अपने हित साधना रह गया है ।
अपने लिए,
अपने
परिवार के लिए पैसा कमाओ और्
सुविधासम्पन्न जीवन जिओ । इस
सोच मे देशभक्ति और राष्ट्रीयता
की भावना सिरे से नदारत रही
है ।
बात
यहीं तक सीमित नही है । हमने
समाज की उन्नति व विकास का जो
ढांचा तैयार किया उसमें सिर्फ
और सिर्फ पैसे का ही महत्व रहा
है । संस्कारों और मूल्यों
को हमने हाशिए पर डाल दिया ।
इधर तेजी से विकसित हो रही
अर्थव्यबस्था ने अनजाने ही
कोढ पर खाज का काम किया ।
बाजारवादी और उपभोक्ता संस्कृति
ने मानवीय मूल्यों और उच्च
गुणों को पूरी तरह से अप्रासंगिक
कर हर व्यक्ति को ऐनकेन पैसा
कमाने की होड मे शामिल कर दिया
।
ऐसे
मे लालच और महत्वाकाक्षांओं
के बशीभूत हो पैसे के लिए देश
व समाज को धोखा देने की प्रवत्ति
को बढावा मिला है । आज स्थिति
यह है कि अगर देश की अस्मिता
व सम्मान को गिरवी रख कर भी
पैसा मिलता है तो कहीं अपराध
भाव जाग्रत नही होता । रोज-ब-रोज
देशद्रोहियों की बढती संख्या
के पीछे यह एक बडा कारण है ।
अब
अगर इस कुचक्र को तोडना है तो
आने वाली पीढी को राष्ट्र्वाद
की शिक्षा स्कूली स्तर से देनी
होगी और उन्हें ऐसे उच्च
संस्कारों से लैस करना होगा
जिसमे सबसे ऊपर स्थान राष्ट्र
का हो । यह संस्कार ही उन्हें
भटकाव से दूर रख सकेंगे । अगर
ऐसा कर सके तो एक समयावधि के
बाद इसके सुखद परिणाम अवश्य
दिखाई देंगे । जिस देश के
नागरिकों के रक्त मे राष्ट्रीय
भावनाओं का संचार होता है,
वहां
आतंकवाद की जडें आसानी से नही
जम सकतीं । आतंकवाद को आतंकित
करने के लिए जरूरी है कि देश
के नागरिकों मे देश प्रेम के
इस मंत्र को जाग्रत किया जाए
।
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