{ एल. एस. बिष्ट } मेरे फेसबुकिये मित्रों की भी अजीब दास्तां है
। कहीं किसी मर्दाने नाम के पीछे औरत छुपी बैठी है । तो कहीं किसी कमसीन चेहरे के पीछे
कोई मर्द घात लगाए बैठा है और कहीं मित्र
बिना चेहरे के फेसबुक पेज पर चहल कदमी कर रहे हैं। फोटो की जगह कहीं खूबसूरत फूल
तो कहीं दो साल का बच्चा खींसे निपोड्ता हुआ, तो कोई मशाल लगाए
, कोई मुट्ठी ताने यानी किस्म किस्म के प्रतीक चिन्हों के साथ विराजमान हैं लेकिन चेहरा नदारत ।
अब यह समझ से परे है। अगर
नाम है तो चेहरा भी होगा और चेहरा है तो फोटो भी । फिर य्ह गांव गवेडी महिलाओं की
तरह घूंघट क्यों ? सीना तान कर चेहरे के साथ आने मे कोई शर्म
है क्या । भाई हमे भी तो पता च्ले कि आखिर हम लाइक या कमेंट कर किसे रहे हैं । महिलाओं
का घूंघट
मे रहना तो जमाने को देख्ते समझ मे आता है लेकिन पुरूषों का यह
तिलिस्म समझ से परे है ।
बात यही तक नही है । कहीं कहीं
तो इसके उल्टा भी है । खूबसूरत कमसीन चेहरा युवती का ! पीछे बैठे
हैं 60 साल के बुर्जूग या 25साल का गबरू
जवान । दिल फेंक शायरी, कविताएं लिख लिख थोक के भाव लाइक कमेंट
बटोर रहे हैं और कभी कभी दिलफेंक आहें भी ।
यही नही, कहीं तो आंटी जी अपनी
जवानी की फोटो लगाए अपने गुजरे जमाने को याद कर रही हैं लेकिन कुछ बेचारों का भी खूबसूरत
चेहरे को देख, लाइक की लार ट्पकाते टपकाते मुंह सूखा जा रहा है
। अरे भाई क्यों इमोश्नल अत्याचार कर रहे हो, अच्छी बात नही ।
फेंक दो यह खूबसूरत नकाब । दूसरी तरफ देखो
तो मित्रों को लाइक का अकाल पडा है । बेचारे 4000 या 5000
मित्रों की टोली लिए बैठे हैं और लाइक है कि नसीब मे नही । थोडा उनका
भी दिल रख लो भाई वरना एक दिन वह भी उसी रास्ते पर आ जायेगे और फिर पता च्ला कि फेसबुक
पर फेक प्रोफाइलों की संख्या ज्यादा असली की कम हो गई । इन बेचारों को भी लाइक देकर गले लगा लो ।
वैसे फेसबुक के यह मित्र भी
अजीब होते हैं । ज्यादातर नदारत ही रहते
हैं । लाइक के समय न जाने कहां छिप जाते हैं । ढाई सौ मे 15-20 नजर आऐगें । सोच
रहा हूं गुमशुदी की रिर्पोट लिखा दूं , पता तो चले आखिर हैं
कहां ।
अब जब बात चल ही पडी है तो
बताते चलें कि फेसबुक पर तो कुछ मित्रों ने हमे अपना बचपन ही याद दिला दिया जब कक्षा मे बोर्ड
पर सबसे पहले कोई आदर्श वचन लिखा दिखाई देता था । अमल करें या न करें घुट्टी रोज पिलाई
जाती थी - सदा सच बोलो, गरीबों की मदद करो,
माता पिता की सेवा करो और भी न जाने क्या क्या । कुछ मित्र इन
स्कूली दिनों को याद दिलाने का काम फेसबुक पर भी बखूबी कर रहे हैं खूबसूरत कार्डों
पर लिखी अच्छी अच्छी बातों को चिपका कर । तरस गये उनके हाथों से लिखे दो शब्द
पढ़ने के लिए । भगवान जाने वह दिन आऐगा भी कि नही या यही कार्ड पढ़ते हुऐ हम बुढ़ा
जायेगें ।
एक प्रजाती और मिली टांग (टैग)
देने वाली । चाहो न चाहो आप को टांग कर ही दम लेगें ।इतना टांग देगें कि आपका दम
ही निकल जाए । कई बार गिड़गिड़ा चुके हैं देखिए दिल कब पसीजता है । वैसे दया
याचिका लगी हुई है । सच तो यह है कि इन
फेसबुकिये मित्रों की कहानियों का कोई अंत
नही । जितने ज्यादा मित्र उतनी ज्यादा
कहानियां । मुख्य कथा के साथ अनेक उपकथाएं । बस यही कहा जा सकता है कि फेसबुक है तो फेस करना ही होगा । यथा नाम
तथा स्वभाव ।
एल.एस. बिष्ट,
11 / 508 , इंदिरा नगर,
लखनऊ -16
मो. 9450911026
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