{ एल.एस.बिष्ट
} पहाडों
की गोद में, गंगा तट पर बसा ऋषिकेश एक साधुओं की नगरी हे लेकिन मेरी यादों में यह
नटखट बंदरों का भी शहर हे यहां के बंदरों
की बात ही अलग थी । यहां कदम रखते ही सैकड़ों की संख्या में उछलते कूदते बंदर आने
वालों को यह आभास करा देते थे कि यहां उनका भी हक बनता है ।
उस समय लगता था यहां आदमी कम बंदर ज्यादा हैं
। उन नटखट बंदरों के तमाम किस्से आज बीती बातें बन कर रह गई हैं । ऋषियों के लिए
कपड़े धूप में सुखाना एक जोखिम का काम हुआ करता था । कब कौन ले उड़े पता नहीं । और
फिर शुरू होता लुकाछिपी का खेल ।लेकिन एक खूबी थी कपड़े कभी नही फाड़ते । काफी
परेशान करने और खाने का सामान लेने के बाद कपड़े वापस कर देते । रसोई में घुस खाने
की चीजों को चट कर जाना इनके बाएं हाथ का खेल था ।

एल.एस.बिष्ट,
11/508, इंदिरा नगर,
लखनऊ-16
मो. 9450911026
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