साहित्य में कामदेव
की कल्पना एक अत्यन्त रूपवान युवक के रूप में की गई है और ऋतुराज वसंत को उसका
मित्र माना गया है ।
कामदेव के पास पांच तरह के बाणों की कल्पना भी की गई है ।य़ह
हैं सफेद कमल, अशोक पुष्प, आम्रमंजरी, नवमल्लिका, और नीलकमल । वह तोते में बैठ कर
भ्रमण करते हैं । संस्कृत की कई प्राचीन पुस्तकों में कामदेव के उत्सवों का उल्लेख
मिलता है । इन उल्लेखों से पता चलता है कि प्राचीन भारत में वसंत उत्सवों का काल
हुआ करता था । कालिदास ने अपनी सभी कृतियों में वसंत का और वसंतोत्सवों का व्यापक
वर्णन किया है । ऐसे ही एक उत्सव का नाम था मदनोत्सव यानी प्रेम प्रर्दशन का उत्सव
।यह कई दिनों तक चलता था ।राजा अपने महल में सबसे ऊंचे स्थान पर बैठ कर उल्लास का
आनंद लेता था । इसमें कामदेव के वाणों से आहत सुंदरियां मादक नृत्य किया करती थीं
। गुलाल व रंगों से पूरा माहैल रंगीन हो जाया करता था । सभी नागरिक आंगन में नाचते
गाते और पिचकारियों से रंग फेकते (इसके लिए श्रंगक शब्द का इस्तेमाल हुआ है } नगरवासियों
के शरीर पर शोभायामान स्वर्ण आभुषण और सर पर धारण अशोक के लाल फूल इस सुनहरी आभा
को और भी अधिक बढ़ा देते थे । युवतियां भी इसमें शामिल हुआ करती थीं इस जल क्रीड़ा
में वह सिहर उठतीं (श्रंगक जल प्रहार मुक्तसीत्कार मनोहरं ) महाकवि कालिदास के
“कुमारसंभव” में भी कामदेव से संबधित एक रोचक कथा का उल्लेख मिलता है ।
इस कथा के अनुसार भगवान शिव ने कामदेव को
भस्म कर दिया था तब कामदेव की पत्नी रति ने जो मर्मस्पर्शी विलाप किया उसका बड़ा
ही जीवंत वर्णन कुमारसभंव में मिलता है ।
अशोक वृक्ष के नीचे रखी कामदेव की मूर्ति की
पूजा का भी उल्लेख मिलता है । सुदंर कन्याओं के लिए तो कामदेव प्रिय देवता थे ।
“रत्नावली” में भी यह उल्लेख है कि अंत;पुर की परिचारिकाएं हाथों में आम्रमंजरी
लेकर नाचती गाती थीं ।यह इतनी अधिक क्रीड़ा करती थीं लगता था मानो इनके स्तन भार
से इनकी पतली कमर टूट ही जायेगी ।
“चारूदत्त” में भी एक उत्सव का उल्लेख मिलता
है । इसमें कामदेव का एक भब्य जुलूस बाजों के साथ निकाला जाता था । यहीं यह उल्लेख
भी मिलता है कि गणिका वसंतसेना की नायक चारूदत्त से पहली मुलाकात कामोत्सव के समय
ही हुई थी ।
बहरहाल यह गुजरे दौर की बातें हैं । कामदेव
से जुड़े तमाम उत्सव अतीत का हिस्सा बन चुके हैं और समय के साथ सौंदर्य और मादक
उल्लास के इस वसंत उत्सव का स्वरूप बहुत बदल गया है । अब इसका स्थान फुहड़ता ने ले
लिया है ।अब कोई किसी से प्रणय निवेदन नही बल्कि जोर जबरदस्ती करता है और प्यार न
मिलने पर एसिड फेकता है । प्यार सिर्फ दैहिक आकर्षण बन कर रह गया है । कामदेव के
पुष्पवाणों से निकली मादकता, उमंग, उल्लास और मस्ती की रसधारा न जाने कहां खो गई ।
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