सपने में सच (मेरी यह लघुकथा दै.जागरण 14 जुलाई, 1985 को
प्रकाशित हुई थी )
वह सुबह बिस्तर से उठी । उसका चेहरा आज उदास
नहीं था । आज क्यों इतना खुश है रेनू , मां ने पूछा । “ मैने आज एक सपना देखा मां
।“ क्या देखा तूने , मां ने पूछा । कोई बहुत सुन्दर राजकुमार जैसा ....सफेद घोड़े
में बैठ कर ...”। ऐसा कुछ तो मैने भी देखा , मां ने कहा । “ तुमने क्या देखा मां ¿
उसने पूछा । “ बिल्कुल ऐसा ही लेकिन पता नहीं क्यों शादी के बीच मे ही झगड़ा होने
लगा । तुम्हारे बापू जोर जोर से कुछ कहने लगे और फिर नींद खुल गई ।“बापू आपने भी
कुछ देखा । उसने चहकते हुए पूछा । हां बेटे । “ मैने लड़के वालों से झगड़ा होने के
बाद भी देखा , बापू ने कहा । “ तब तो ये सपना जरूर सच होगा न “ उसने मासूमियत से
कहा । “ नही नही बेटे ऐसा नही कहते।“ कहते हुए बापू का चेहरा उदास हो गया ।
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