यह बात तय हो चुकी
है कि बहुत समय पहले धुंधले अतीत मे जल के महापात्र सागर मे तब्दील हुए | फ़िर इनमे
पाए जाने वाले तत्वों –क्षार से प्रोटोप्लाजम बना और इससे जीव का जन्म हुआ |
धीरे-धीरे इस जीव पदार्थ ने किसी तरह क्लोरोफ़िल जैसी महत्वपूर्ण चीज अपने अंदर
पैदा कर ली | फ़िर फ़ोटो संश्लेषण के ज्ररिए जड पदार्थों से जीवन तत्वों का निर्माण
करना सीख लिया | दूसरी ओर इसी जीव पदार्थ की दूसरी जाति ने क्लोरोफ़िल वाले जीवित
पदार्थों को अपने जीवन का आधार बनाना सीखा | इस तरह जीवन की शुरूआत हुई |
समय के साथ जीवन के विकास की यात्रा भी बढती
गई और यह जीवन जटिल होता गया| एक कोशिय जीवों से तब ऐसे जीवों का विकास हुआ जो
बहुकोशिय थे | इन्मे अपने ही जैसे दूसरे जीवों को पैदा करने हेतु अलग-अलग अंग थे |
इनमे अनेक जीव ऐसे थे जो पृथ्वी और सागर दोनो जगह आसानी से रह सकते थे | जीवन की
गाडी आगे बढ्ती गई और कुछ जीव जन्तु सागरों मे लौट आए | कुछ स्तनपायी जीवों ने
अपने मस्तिष्क का असाधारण विकास कर लिया और इस तरह मनुष्य के पहले पूर्वजों का
स्वरूप सामने आया | वनस्पतियों का भी असाधरण विकास हुआ और कई किस्म के पेड-पौधे,
झाड-घास आदि के जंगल उग आए |
हमारे अवतार्वाद की धारणा भी इस मत कि पुष्टि
करती है | जीव का जन्म सागर से हुआ और मत्स्य अवतार इसी का प्रतीक है | दूसरे पहलू
की तरफ़ देखें तो पृथ्वी एक जलीय ग्रह है | इसका तीन चौथाई भाग जलमय है | पृथ्वी की
तरह सागरों मे भी असंख्य जीव पलते हैं | सागर के एक चुल्लू भर पानी मे करोडों
नन्हें पौधे और जीव दिखाई दे सकते हैं | यही वह जीवित पदार्थ हैं जिन पर सारे जीवन
की नींव रखी हुई है | इंसान भी तो इन्हीं सागरों की संतान है |
जल के बिना जीवन असंभव है | सागर मंथन की कथा
इसी सच्चाई को मिथक रूप से प्रकट करती है | यही नही, सौर परिवार मे पृथ्वी ही
अकेला जलीय ग्रह है | इस जल से ही यहां जीवन संभव हो सका है | दूसरे ग्रह तो जीव
जन्तु विहीन हैं |
इस तरह महासागरों की इस जन्म कहानी से यह बात
तो सिध्द हो ही जाती है कि इनकी उम्र पृथ्वी से ज्यादा तो है ही नही | पृथ्वी की
उम्र ल्गभग 4 अरब वर्ष मानी जाती है और इस तरह महा सागरों की उम्र इससे कम मानी जा
सकती है | हिन्द महासागर इनमे कुछ नया है |इसका जन्म आज से 18 करोड वर्ष पहले
महादीपीय अपसरण का परिणाम माना जाता है |
कभी भारत और आष्ट्रेलिया अंटार्कटिका
महाद्वीप से जुडे थे | कुछ भूगर्भीय हलचलों के कारण भारत गौंडवाना लैंड से टूट कर
3 इंच प्रतिवर्ष की गति से उत्तर पूर्व की ओर खिसकते हुये दूर चला गया | इसी तरह
लगभग 2 करोड वर्ष पूर्व अरब देश अफ़्रीका से अलग होकर पूर्व की ओर खिसक गए जिससे
लाल सागर और अदन की खाडी मे हिंद महासागर का जन्म हुआ |
अतीत मे यह महासागर जीवों के जीवन की धूरी थे
| अगर यह कहा जाए कि धरती का जीवन इन्ही पर आधारित था तो गलत न होगा | गौरतलब यह
भी यह है कि आज भी सागर के किनारे रहने वाले लोगों का जीवन बहुत हद तक इन पर ही
निर्भर है | इनके भोजन का मुख्य स्त्रोत सागर ही हैं | आज जबकि पृथ्वी के विभिन्न स्त्रोत और संसाधन
लगातार कम होते जा रहे हैं हमे फ़िर अपने सागरों की याद आने लगी है | सागरों मे वे
सभी चीजें मिलती हैं जो हमारी पृथ्वी मे हैं | अब तो यह बात भी सिध्द हो चुकी है
कि सागर के विभिन्न संसाधनों के विवेक संगत उपयोग से लोगों का जीवन स्तर सुधारा जा
सकता है | लेकिन यही तभी संभव है जब हम सागर की संपदा का उपयोग समझदारी से करें |
आपसी होड इस संपदा को बर्बाद ही करेगी | साथ ही हमे अपने सागरों को तरह तरह के
प्र्योग करने की प्रयोगशाला बनाने से बचना होगा | आगे चल कर इसके दुष्परिणाम हमे
ही भुगतने होंगे |
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