फोटोग्राफी की दुनिया अब काफी आगे निकल आई है । वह दिन गए जब किसी फोटो में अपना ही चेहरा तलाशना मुश्किल हो जाया करता था । आज फोटोग्राफी की दुनिया चमकदार ही नहीं तिलिस्मी भी हो गई है । कैमरे ने जो नहीं देखा वह भी फोटो मे दिखाया जा सकता है । लेकिन यह आज के दौर की बातें हैं । कुछ समय पहले तक यह संभव नहीं था । इसलिए फोटो खींचने का काम बडे जतन से किया जाता था । इस बीते दौर का गवाह है मिंट कैमरा । आज भी यह शहर के कुछ खास स्थानों पर दिखाई दे जाता है ।
लेकिन आज की तेज रफ्तार जिंदगी के बीच इसकी ' झटपट सेवा ' ने इसे जिंदा रखा हुआ है । अगर इसमें यह खूबी नहीं होती तो यह बहुत पहले ही दुनिया से अलविदा कह चुका होता । सच पूछिए तो स्कूल कालेजों के छात्रों, रोजगार की लाइन में लगे लोगों के लिए तो यह एक वरदान ही है ।
दर-असल मिंट शब्द मिनट शब्द का ही बिगडा हुआ रूप है । चंद मिनटों मे ही फोटो तैयार कर दिए जाने के कारण ही इसका नाम मिंट कैमरा पडा । यह एक बक्से की तरह लकडी से बना है और लकडी के ही स्टैंड पर टिका रहता है । लकडी के इस डिब्बे पर काले रंग का चमडा मढा होता है जिससे रोशनी अंदर न जा सके । इसके उपर ढ्क्कन लगा होता है । आगे वाले हिस्से मे कैमरे का लैंस होता है । यह लैंस एक 'बैलो ' से जुडा रहता है । इसे लैंस सहित आगे पीछे किया जा सकता है । लैंस के पीछे कैमरे के अंदर अलग अलग आकार के तीन या चार पीतल के फ्रेम बने रहते हैं । जब फोटोग्राफर फोटो लेता है तब वह अपने को व कैमरे को भी एक काले कपडे से ढक लेता है जिससे कैमरे के अंदर रोशनी न जा सके । खींचते समय वह लैंस के आगे लगा ढक्कन कुछ पलों के लिए हटा कर फिर लगा देता है । बस फोटो खिंच जाती है ।
आगे की पूरी प्रक्रिया कैमरे के ही अंदर पूरी की जाती है । फोटो डेवलेप करने से लेकर ' हाइपो ' के घोल मे डालने तक सब्कुछ अंदर ही कर लिया जाता है । फोटोग्राफर कैमरे के ऊपरी हिस्से में बने व्यूफाइंडर से भीतर देखता रहता है कि फोटो सही तरीके से बन रही है कि नहीं । यह सभी काम चंद मिनटों मे पूरे हो जाते हैं । यही इसकी खूबी है और इस खूबी के कारण ही इसकी उपयोगिता हमेशा रही है ।
यह अलग बात है कि इस कैमरे से निकली फोटो बहुत चमकदार और अच्छी तो नही होती लेकिन तात्कालिक जरूरत को पूरा कर लेती है । इसका उपयोग अंग्रेजी शासन काल से ही चला आ रहा है । देश के कई शहरों मे तो इन फोटोग्राफरों की अच्छी खासी संख्या रही है । दिल्ली और लखनऊ जैसे शहरों मे यह आज भी दिखाई देते हैं बेशक अब यह गिनती के रह गये हैं ।
शहर के कुछ खास स्थानों मे आज भी इन्हें देखा जा सक्ता है । विशेष रूप से कचहरी, आर.टी.ओ आफिस, भर्ती दफ्तर, रोजगार कार्यालयों जैसे जगह मे आज भी इनका अस्तित्व बचा हुआ है । लेकिन साल-दर-साल इन लोगों की संख्या कम होती जा रही है । एक पुराने फोटोग्राफर बताते हैं कि अब नई तकनीक आने से इसकी जरूरत नही रही । कम्प्यूटर ने सबकुछ संभव कर दिया है । अब इस पेशे से इतनी आय नहीं होती कि घर चलाया जा सके । खास बात यह है कि अब कोई भी इस काम को नही करना चाहता । जो थोडे से लोग हैं वह भी मजबूरी में बंधे हुए हैं ।
इस व्यवसाय से जुडे लोगों से बातचीत करने पर दम तोडते इस व्यवसाय का दर्द सामने आता है । यह सच है कि आधुनिक कैमरों व फोटोग्राफी ने इस व्यवसाय की कमर ही तोड दी है । रंगीन फोटोग्राफी ने भी कम नुकसान नहीं पहुंचाया । वैसे भी श्वेत-श्याम फोटो को अब कौन पसंद करता है । इन फोटोग्राफरों की नई पीढी इस काम को हरगिज करना नही चाहती । उन्हें इस काम मे कोई भविष्य नजर नहीं आता ।
लेकिन आधुनिकता के बीच इस पुरानी चीज का जिसका इतना लंबा जुडाव रहा है हमसे दूर हो जाना कहीं एक खालीपन तो देता ही है लेकिन अब देखना यह है कि मिंट कैमरों से जुडे चंद फोटोग्राफर कब तक इस व्यवसाय को जिंदा रख पाते हैं ।
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