शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2015

सात समंदर पार से .............



(एल.एस. बिष्ट ) - बीते दौर का एक लोकप्रिय फिल्मी गीत है " सात समंदर पार से, गुडियों के बाजार से, एक अच्छी सी गुडिया ले आना, पापा जल्दी आ जाना ..." । इस गीत मे विदेश गमन के आकर्षण को बहुत ही खूबसूरत तरीके से अभिव्यक्त किया गया है । बेशक यह उस दौर का गीत रहा हो जब सात समंदर पार जाना किसी के लिए भी इतना आसान नही था । लेकिन आज भी विदेशी धरती के लिए आकर्षण जस का तस बरकरार है । शायद ही कोई ऐसा हो जो विदेश का नाम सुन कर खुशी से फुला न समाये । यह दीगर बात है कि आज भी विदेश जाने का अवसर सभी को नही मिल पाता । लेकिन यह भी सच है कि आर्थिक प्रगति के तमाम दावों के बाबजूद भारत से विदेश जाने का सिलसिला कहीं से कम नही हुआ है ।
देश मे पूंजी निवेश को बढावा देने तथा व्यापार जगत को कई प्रकार की सुविधाएं तथा सकारात्मक कार्य संस्कृति देने के तमाम वादों के बाबजूद एक आम भारतीय मे विदेश मे बसने की लालसा हिलोरे मारती है ।
जनवरी 2015 तक आंकडों को देखें तो विदेशों मे कुल भारतीयों की संख्या तीन करोड के आसपास है जिसमे पोने दो करोड ऐसे हैं जिन्हें उस देश की नागरिकता मिल चुकी है जहां वह रह रहे हैं । देखा जाए तो विदेशों मे बसे भारतीयों की यह बडी संख्या है । कुछ देशों मे तो भारतीयों की संख्या इतनी अधिक है कि वहां एक लघु भारत के दर्शन होते हैं । अकेले अमरीका मे 45 लाख भारतीय हैं । इनमे से लगभग 32 लाख भारतीयों को अमरीकी नागरिकता मिल चुकी है । ग्रेट ब्रिटेन मे भी 18 लाख से ज्यादा भारतीय हैं । यूरोपीय देशों के अलावा भारतीयों की अच्छी खासी संख्या खाडी देशों मे भी है ।
वैसे तो अधिकांश भारतीय विदेशों मे अच्छी नौकरी व सुविधाओं के लिए ही जाना पसंद करते हैं जो वहां उन्हें आसानी से मिल जाती है । आर्थिक कारणों से जाने वाले भारतीयों के अलावा एक बडी संख्या उन अमीरों की भी है जो अन्य कारणों से विदेश जाना पसंद करते हैं । इसके लिए मुख्य रूप से टैक्स प्रणाली व भारत की व्यापार कार्य संस्कृति जिम्मेदार है ।
अभी हाल मे एक ग्लोबल रिपोर्ट मे बताया गया कि पिछ्ले 14 वर्षों 61000अमीर भारतीयों ने देश की बजाए विदेश जाना अधिक पसंद किया । भारत से ज्यादा संख्या सिर्फ पडोसी चीन की है । इसका सीधा सा तात्पर्य यह भी है कि इन्हें भारत मे व्यापार व पूंजी निवेश के लिए प्रर्याप्त अनुकूल परिवेश नही दिखाई दे रहा । इस द्र्ष्टि से देखा जाए तो सरकार सही दिशा की ओर बढ रही है तथा देश मे व्यापार की संभावनाओं को बढाने के लिए तमाम उपाय भी तलाश रही है ।
वैसे तो भारत से विदेश जाने के पीछे अभी तक मुख्यत: आर्थिक कारण ही रहे हैं । वहां रोजगार व अच्छे वेतन की संभावनाओं को देखते हुए एक आम भारतीय विदेश जाना व वहीं रह जाना पसंद करता रहा है । लेकिन इधर कुछ स्मय से उच्च शिक्षा के लिए भी बडी संख्या मे भारतीय छात्र विदेश जा रहे हैं । एक अनुमान के अनुसार हर साल लगभग डेढ लाख भारतीय छात्र विदेश मे पढाई के लिए फार्म भरते हैं । इसमे अकेले अमरीका मे हर साल 25 हजार छात्र पढने जाते हैं । अमरीका के बाद आष्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, कनाडा आदि देशों मे भी भारतीय छात्र उच्च शिक्षा के लिए जाना पसंद करते हैं । दर-असल इसका एक बडा कारण यह है कि भारत मे तकनीकी व प्रबंधन के अच्छे गुणवत्ता के कालेज नही है ।
नेशनल सेंटर फार साइंस एंड इंजीनियरिंग स्टैटिष्टिकस  के जारी आंकडों के अनुसार एशिया से अमरीका जाने वाले प्रवासी वैग़्य़ानिकों और इंजीनियरों मे सबसे बडी संख्या भारतीयों की है । रिपोर्ट के अनुसार अमरीका के 29.60 लाख एशियाई वैज्ञानिकों व इंजीनियरों मे 9.50 लाख भारतीय हैं । यही नही, रिपोर्ट बताती है कि 2003 की तुलना मे 2013 मे भारत से आने वाले वैज्ञानिकों व इंजीनियरों की संख्या मे 85 फीसदी का इजाफा हुआ है ।
यह चौंकाने वाले आंकडे हैं और देश के हित मे एक गंभीर चिंता का विषय भी ।दर-असल औसत स्तर के रोजी-रोजगार के लिए विदेशों को पलायन करना एक आम बात है लेकिन जब किसी देश से अमीर व्यापारी व उसकी युवा प्रतिभाएं विदेशों का ही रूख करने लगे तो इस पर सोचा जाना चाहिए । आज यही हो रहा है । उच्च शिक्षा के बाद हमारे युवा वहीं रहने व बसने को पसंद करने लगे हैं । अमरीका, ग्रेट ब्रिटेन, कनाडा व आष्ट्रेलिया जैसे देशों मे युवा वैज्ञानिकों व इंजीनियरों की संख्या तेजी से बढ रही है ।
अगर यही हालात रहे तो भारत को आने वाले समय मे इस नई समस्या से भी जूझना होगा । इसलिए जरूरी है कि देश की प्रतिभाएं देश मे रह कर विकास मे अपनी भागीदारी निभाएं तथा एक नये भारत के निमार्ण मे अपने ग़्य़ान क उपयोग करें ।ऐसा हो सके इसके लिए सरकार को सोचना होगा तथा विदेशों की तरफ हो रहे इस पलायन को रोकने के हर संभव प्रयास करने होंगे । 

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