(एल.एस.बिष्ट)- भारतीय
राजनीति की विडंबना रही है कि समय समय पर यहां कब्र मे दफ़न मुर्दे फ़िर जिंदा हो
बोलने लगते हैं | चूंकि कब्र मे दफ़न किए गये मुर्दे विभिन्न राजनीतिक कालखंडों से
संबधित रहे हैं इसलिए विवाद होना भी स्वाभाविक ही है | यह दीगर बात है कि आजादी के
बाद चूंकि कांग्रेस को ही एक लंबे समय तक सत्ता सुख भोगने का अवसर मिला है इसलिए
ज्यादातर दफ़न मुर्दे भी उसी से जुडे हैं |
राजनीतिक
इतिहास मे फ़िर समय आया गैर कांग्रेसी शासन का | कुछ मुर्दों को इस काल मे भी
चुपचाप दफ़न कर दिया गया | अब जब इधर एक नई राजनीतिक शैली विकसित हुई है जिसमें
इतिहास के विभिन्न कालखंडों मे द्फ़न किए गये मुर्दों पर सवाल उठाये जाने लगे हैं
तो कई ‘ राज ‘ सामने आने लगे हैं | लेकिन यहां यह देखना भी बडा रोचक है कि
प्रत्येक राजनीतिक दल दूसरे दल के सत्ता अवधि मे दफ़न किए गये मुर्दों पर सवालिया
निशान लगाता है और मांग उठाई जाती है कि जल्दबाजी मे दफ़न किए गये उन मुर्दों का
दोबार ‘ पोस्टमार्टम ‘ किया जाए | लेकिन अपने शासन काल मे दफ़न मुर्दों का दोबारा ‘
पोस्टमार्टम ‘ करवाने का ‘ जोखिम ‘ कोई दल नही उठाना चाहता |
इतिहास
के पन्नों मे दफ़न एक ऐसा ही विवाद है नेता जी सुभाषचद्र बोस की मृत्यु का | अब यह
बात भी सामने आई है कि नेहरू जी के शासन काल मे उनके परिवार की जासूसी की जाती रही
है | यही नही, उनके सगे संबधियों के बारे मे भी नेहरू जी इंटेलिजेंस ब्यूरो से
सूचनाएं प्राप्त करते रहे | ऐसा लंबे स्मय तक किया जाता रहा |
इधर उनके
निजी गनर रहे स्वतंत्रता सेनानी जगराम ने खुलासा किया नेता जी की विमान दुर्घटना
मे मौत नही हुई थी | उनकी ह्त्या की गई थी | उनका कह्ना है कि इस बात की सौ फ़ीसदी
आशंका है कि नेताजी को रूष मे फ़ांसी दी गई थी | ऐसा नेहरू के कहने पर रूष के
तानाशाह स्टालिन ने किया था | उन्होने बताया कि चार लोगों को युध्द अपराधी घोषित
किया गया था | इनमे जापान के तोजो, इटली के मुसोलिनी, जर्मनी के हिटलर एवं भारत के
नेता जी सुभाषचंद्र बोस शामिल थे | तोजो ने छ्त से कूद्कर जान दे दी थी | मुसोलिनी
को पकडकर मार दिया गया और हिटलर ने गोली मार कर आत्महत्या कर ली थी | केवल नेता जी
ही बच गये थे | उन्हें जापान ने रूष भेज दिया था |
जगराम
ने यह भी बताया कि नेहरू जी को हमेशा यही लगता था कि यदि नेता जी सामने आ गए तो
फ़िर उन्हें कोई नही पूछेगा | लोग उनके पीछे खडे हो जायेंगे | उन्होने यह भी कहा कि
उनकी लोकप्रियता कई भारतीय नेताओं को नही सुहाती थी | इनमे नेहरू जी सबसे ऊपर थे |
इस
खुलासे के बाद एक और विवाद सामने आ गया | नेता जी के एक भतीजे अद्रेदू बोस ने आरोप
लगाया है कि नेहरू-गांधी परिवार ने राष्ट्र्वादी नेता की विरासत को ही मिटाने की
कोशिश की | यही नही उनके परिवार की जासूसी भी कराई गई | इन्होने यह भी कहा कि भारत
मे इतिहास की किताबों मे बोस, इंडियन नेशनल आर्मी (आइएनए ) का कोई उल्लेख नही है |
जबकि पटेल के बारे मे बहुत थोडा | इस आरोप ने राजनीतिक क्षेत्र मे हडकंप मचा दिया
है | कांग्रेस अपने को घिरा हुआ महसूस कर रही है |
दर-असल ऐसा पहली बार नही है | नेहरू काल के तमाम राजनीतिक फ़ैसलों पर विवाद रहा है | थोडा पीछे देखें
तो कांग्रेस पार्टी का देश की आजादी से जो रिश्ता रहा है, स्वतंत्रता
के बाद उसका भरपूर राजनीतिक लाभ इसे लंबे समय तक मिलता रहा । गांधी और नेहरू को
जिस तरह से देश के स्वाधीनता आंदोलन से जोड कर महिमा मंडित किया गया, उसे समझने मे आमजन को कई दशक लग
गये । दर-असल विभाजन के बाद पहले आम चुनाव में कांग्रेस का
सत्ता में आना एक राजनीतिक वरदान साबित हुआ । सत्ता की बागडोर मिलते ही कांग्रेस
ने जैसा चाह वैसा इतिहास पाठय पुस्तकों में सम्मलित कर एक पूरी पीढी का "ब्रेन वाश " किया । पांचवे दशक मे पैदा हुई
पीढी ने वही पढा और समझा जो उसे स्कूलों की पाठय पुस्तकों में पढाया गया था । यह
कांग्रेस का सौभाग्य रहा कि वह आजादी के बाद लंबे समय तक सत्ता में काबिज रही और
उस इतिहास को पढ कर कई पीढीयां जवान हुईं ।
अगर थोडा गौर करें तो स्वाधीनता आंदोलन में क्रांतिकारियों की भूमिका को
कम करके आंकते हुए इतिहास लिखा गया । एक तरह से बडी चालाकी से इनके योगदान को
हाशिए पर रखने में कांग्रेस सफल रही । यही नहीं, जहां एक तरफ
नेहरू और गांधी को इतिहास में महिमा मंडित किया गया वहीं दूसरी तरफ लोह पुरूष कहे
जाने वाले पटेल की भूमिका और उनके योगदान को भी बडी खूबसूरती से इतिहास के एक छोटे
से कोने में समेट कर रख दिया गया । अब जब सूचनाओं और संचार साधनों का विकसित तंत्र
सामने आया तो लोग समझ सके कि पटेल क्या थे और देश के नव निर्माण में उनका क्या
योगदान रहा ।
यही नहीं, नेहरू शासनकाल की कमजोरियों और विफलताओं
के बारे में भी अब थोडा बहुत जानकारियां मिलने लगीं हैं । अन्य़था कांग्रेसी इतिहास
की चमकीली परतों के अंदर खामियों के सारे अंधेरे दफन पडे रहे । अब इन विवादों ने
एक नई बहस को जन्म दिया है | आमजन भी यह कहने लगा है कि अगर कुछ छुपाया नही जा रहा
तो नेता जी की मृत्यु से जुडे द्स्तावेजों को आखिर सार्वजनिक क्यों नही किया जा
रहा | इतिहास मे दफ़न इन तमाम बातों के सामने आने पर कांग्रेस पार्टी व नेहरू
–गांधी परिवार की देशभक्ति व ‘ बलिदान गाथा ‘ भी सवालों के घेरे मे आ गई है |
बहरहाल, नेता जी की मृत्यु व उनकी जिंदगी के कुछ पहलुओं पर एक
लंबे स्मय से विवाद रहा है | अनेक बार जांच समितियों की रिपोर्ट भी सामने आई हैं
लेकिन कोई ठोस नतीजों के अभाव मे शंकाओं का समाधान न हो सका | अब तमाम आरोपों के
साथ यह मुद्दा फ़िर एक बार चर्चा मे आ गया है | जरूरी है सरकार उन द्स्तावेजों को
सार्वजनिक करे जो गोपनीयता की तह के अंदर दबे पडे हैं | बहुत संभव है तभी नेता जी
से जुडे तमाम विवादों से परदा उठ सकेगा | अगर ऐसा नही तो आखिर यह सस्पेंस कब तक और
क्यों रखा जाना चाहिए , यह सवाल उठना भी स्वाभाविक ही है |
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