अभिनेत्री दीपिका
पादुकोण का वीडियो “माई च्वाइस “ चर्चा मे है | इसकी सराहना करने वालों की भी
अच्छी संख्या है और आलोचना करने वाले भी कम नही | इस वीडियो मे दीपिका को कहते
दिखाया गया है “ मैं शादी करूं या न करूं, यह मेरी मर्जी है ……मैं शादी से पहले
सेक्स करूं या शादी के बाद भी किसी से रिश्ते रखूं यह मेरी इच्छा है “ |
आश्चर्य इस बात का नही कि महिला उत्थान या
सशक्तिकरण के नाम पर लोगों को इसमे कोई बुराई नजर नहीं आ रही बल्कि आश्चर्य इस बात
का है कि वही समाज भाजपा नेता गिरिराज के बयान पर मुंह फ़ाड फ़ाड कर चिल्ला रहा है |
बल्कि गोवा के मुख्य्मंत्री पारसेकर के उस बयान पर भी अपने ज्ञान और मुखरता का
प्रदर्शन कर रहा है जिसमे उन्होंने बहुत ही साधारण ढंग से सिर्फ़ यह कह दिया कि धूप
मे बैठ कर आंदोलन न करो वरना रंग काला पड जायेगा और शादी मे परेशानी होगी | महिला
फ़ोबिया से ग्रसित राजनीति व समाज के एक वर्ग को महिलाओं का सम्मान ‘ गंभीर खतरे’ मे पडता दिखाई देने लगता है |
सामाजिक व्यवहार को लेकर समाज के एक वर्ग
दवारा की गई यह पाखंड्पूर्ण प्रतिक्रियाएं पहली बार नही हैं बल्कि इधर कुछ समय से
महिला सशक्तिकरण के नाम पर कुछ ऐसा ही होता रहा है | दीपिका का यह वीडियो दर-असल
वैचारिक रूप से नपुंसक होते उस समाज का प्रतिफ़ल है जो आज न तो सच बोलने की हिम्मत
जुटा पा रहा है और न ही सच के पक्ष मे खडा होता दिखाई दे रहा है | बल्कि संतुलित
सोच व व्यवहार के पक्षधर लोगों को ही कटघरे मे खडा करने के प्रयास मे अपनी सारी
उर्जा खर्च करता दिखाई देता है | जाने-अनजाने मे यह वर्ग अतिवादी सोच का हिमायती
बन भविष्य के लिए एक ऐसे सामाजिक परिवेश को तैयार कर रहा है जहां “ मेरी मर्जी,
माई च्वाइस “ के नाम पर नैतिक मूल्यों व सामाजिक बंधनों का कोई स्थान नही होगा |
सच तो यह है कि दीपिका जैसी अभिनेत्री को यह
कहने का साहस इसलिए हुआ कि समाज का एक बडा वर्ग महिलाओं के नाम पर भेडों जैसा
व्यवहार करने लगा है | असहमति के स्वर, सहमति के नारों और महिला जाप के मंत्रों के
बीच दब से गये | महिलाओं के बारे मे कही गई साधारण सी बात या मजाक पर भी आसमान सर
पर उठा लेने की होड सी दिखाई देने लगी है | इस ‘ महिला फ़ोबिया ‘ के चलते जो माहौल
बना उसमे दीपिका का इस तरह का वीडियो बनाना स्वाभाविक ही था |
देखा जाए तो यह वीडियो युवतियों को खुले
सेक्स के लिए तो उकसा ही रहा है साथ मे सामाजिक बंधनों के प्रति विद्रोही तेवर
अपनाने की भी वकालत कर रहा है | अगर महिला उत्थान के नाम पर बिना सोचे समझे ऐसे ही
जयकारे लगते रहे तो वह दिन दूर नही जब वह अपने दूसरे वीडियो मे युवतियों को
सुरक्षित सेक्स के तरीके भी समझाती नजर आयेंगी | बहुत संभव है रिश्तों की मर्यादा
के लिए बनाए गये बंधनों की भी हंसी उडाती नजर आएं और ऐसे सेक्स माहौल की वकालत
करती दिखें जहां कोई रिश्ता मायने नही रखता सिवाय यौन सुख के | यहां सवाल उठता है
कि क्या हम ऐसे समाज की कल्पना कर रहे हैं |
यहां यह भी समझना जरूरी है कि जब ‘ माई च्वाइस ‘ या मेरी मर्जी की निरकुंश
सोच को किसी भी सामाजिक व्यवस्था के मूल्य व बंधन स्वीकार नही तो फ़िर बलात्कार या
किसी प्रकार के दैहिक शोषण के मामलों मे उसे उस समाज को कोसने का भी कोई अधिकार
नही | समाज के अपने कुछ बंधन होते हैं जिन्हें सामाजिक प्राणी होने के नाते सभी को
स्वीकारना होता है | उनसे विद्रोह और निरंकुश मर्जी के चलते किसी भी घटना /
दुर्घटना होने पर समाज को उसके लिए उत्तरदायी नही ठहराया जा सकता | यह कतई संभव
नही कि एक तरफ़ तो आप “ मेरी मर्जी , मेरी मर्जी “ के नारे लगाते हुए समाज के किसी
बंधन को स्वीकार न करना चाहे और दूसरी तरफ़ उसी समाज से सुरक्षा की उम्मीद लगायें |
इस संदर्भ मे गौरतलब यह भी है कि जब ‘ माई
च्वाइस ‘ (मेरी मर्जी) सोच की समर्थक युवतियों को अपनी मर्जी के आगे किसी तरह के
सामाजिक बंधन स्वीकार्य नहीं तो बलात्कारी व नारी शरीर को भोग की वस्तु समझने
वालों से कैसे किसी बंधन की आशा रख सकती हैं | बलात्कार करना उनकी भी ‘ च्वाइस ‘
हो सकती है | वह जब चाहे जिसके साथ चाहें इस घृणित कार्य को करने के लिए स्वतंत्र
है^ | यह समझना जरूरी है कि समाज मे अंकुश
सभी पर लागू होते हैं , एक तरफ़ा नही |
बहरहाल बात सिर्फ़ इस विवादास्पद वीडियो तक
सीमित नही है | अगर आज महिलाओं की स्वतंत्रता, उत्थान व सशक्तिकरण के मुद्दे पर
इसी तरह ‘ महिला फ़ोबिया ‘ से ग्रसित होकर बढ चढ कर जयकारे लगाये जाते रहे और हर
सही गलत पर इसी तरह ताली पीटते रहे, तो वह
दिन दूर नही जब हमे एक ऐसा नजारा देखने को मिलेगा जिसकी कल्पना तक हमने न की होगी
| भारतीय पारिवारिक-सामाजिक मूल्यों की बिखरी हुई चिंदयों को समेटना भी चाहेंगे तो
समेट न सकेंगे |
एल.एस.बिष्ट , 11/508 इंदिरा नगर,
लखनऊ
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