( एल.एस.बिष्ट ) - बिहार
की पूरे देश मे एक अलग पहचान रही है | एक तरफ़ यह पिछ्डेपन का प्रतीक रहा है तो
दूसरी तरफ़ जातीयता की नर्सरी के रूप मे भी देखा जाता रहा है | जब जब पिछ्डेपन और
जातीयता की बात आती है, बिहार का ही चेहरा सामने आता है | दर-असल यह दुर्भाग्य रहा
है इस प्रदेश का कि यह अपने जन्म से ही जातीय दलदल का शिकार होकर रह गया | यहां के
इस सामाजिक ताने बाने का लाभ उठा राजनेताओं ने भी अपनी राजनीति की धुरी जातीय
राजनीति को ही बनाये रखने मे अपना हित समझा | बिहार का आजतक का राजनैतिक इतिहास
जातीय राजनीति के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा है | यहां की जातियों के समीकरणों को
साधने का मतलब सत्ता की चाभी का हाथ मे आ जाना है इसीलिये यहां विकास हमेशा हाशिये
पर पडा रहा | पिछ्डी व दलित जातियों के बाहुल्य वाला यह प्रदेश दर-असल इस जात पांत
का ही शिकार होकर रह गया |
90 के दशक तक यहां की राजनीति जातीय समीकरणों
से ही संचालित होती रही | विकास की बात हमेशा कोसों दूर रही | मुख्यमंत्रियों का ज्यादा
समय जातीय समीकरणों को ही साधने मे जाया होता रहा | लेकिन 90 के दशक मे अयोध्या
मुद्दे ने पूरे देश मे एक नई राजनैतिक
हलचल पैदा कर दी और बिहार भी इससे अछूता नही रहा | लेकिन हिन्दुत्व की यह लहर यहां
बहुत दिनों तक अपनी धार कायम न रख सकी और जल्द ही मंडल ने राजनीति को एक नई दिशा
मे मोड दिया | पिछ्डी जातियां सत्ता मे भागीदारी के लिए मुखर रूप से सामने आने
लगीं और इन्होने अपने को लामबंद करना शुरू किया |
दर-असल यही समय था जब लालू का जादू सर चढ कर
बोलता रहा | यहां की अगडी जातियों को जो लगभग 25% हैं जिसमे ब्राहमण, राजपूत व
वैश्य आदि शामिल हैं , पिछ्डी-दलित राजनीति के गठजोड ने हाशिये पर डाल दिया | यही
कारण कि मंडल के बाद भाजपा अकेले दम पर यहां कभी भी मजबूत स्थिति मे नही दिखाई दी
| यहां उसे किसी न किसी दल की बैसाखी की जरूरत बनी रही | इस बीच भाजपा व नितीश के गठजोड ने पिछ्डी व अगडी
जातियों का एक ऐसा समीकरण बनाया जो लालू के वर्चस्व को चुनौती देने लगा | अब तक
रामबिलास पासवान की दलित राजनीति भी हिचकोले खाने लगी थी | दर-असल राजनीति के
विसात पर चली चाल के फ़लस्वरूप महादलित के रूप मे दलितों के सामाजिक विभाजन ने
पासवान के राजनैतिक प्रभाव को बहुत हद तक कम कर दिया था | इस बीच मोदी के सवाल पर
भाजपा और जनता दल (युनाइटेड) का गठबंधन टूट गया | लेकिन भाजपा को बैसाखी मिली लोजपा
के रामबिलास पासवान व राष्ट्रीय लोक समता पार्टी की | दूसरी तरफ़ जेडीयू और राजद
चुनाव के मैदान पर अपने अपने समीकरणों के बल पर ताल ठोकते रहे |
लेकिन 16वीं लोकसभा के चुनाव परिणामों ने
सारे समीकरणों को ध्वस्त कर दिया और मोदी के विकास और अच्छे दिनो के वादों ने
जातीय राजनीति के समीकरणों को सिरे से नकार दिया | राजद के मुस्लिम-यादव समीकरण को भी बुरी तरह मुंह की खानी पडी | जद(यू) ने 13 मुस्लिम
उम्मीदवार को चुनाव मे टिकट दिया लेकिन एक भी चुनाव न जीत सका | दूसरी तरफ़ राजग ने
सभी सुरक्षित सीटों पर भी जीत हासिल की |
सख्या बल मे
अपनी कमजोर स्थिति देखते हुये नीतिश ने सरकार बचाने के लिये फ़िर वही जातीय
कार्ड खेलना बेहतर समझा | जतिन मांझी को मुख्यमंत्री बना कर उन्होने पासवान के बढ्ते
प्रभाव को कम करने के साथ साथ दलित बोट बैंक पर फ़िर से कब्जा करने की कोशिश की है
| यही नही भाजपा के सरकार गिराने के प्रयासों पर भी नकेल लगाने का मकसद इसमे
छिपा है | अगले साल होने वाले विधानसभा
चुनाव के लिये वह एक बार फ़िर जातीय राजनीति को अपने पक्ष मे कर विकास के मुद्दे को
हाशिये पर डालना चाहते हैं | वह यह अच्छी तरह समझ गये हैं कि मोदी के विकास नारे
को कुंद किये बगैर वह बिहार को नही जीत सकते | लेकिन राजनीति की इस विसात का
खामियाजा भुगतेगा बिहार | चुनावी लाभ के लिए एक रबर स्टैम्प मुख्यमंत्री बना कर
उन्होने बिहार के विकास को एक बार फ़िर पीछे धकेल दिया है | यही नही, बिहार जिस जातीय राजनीति के दलदल से निकलने की
कोशिश कर रहा था उन प्रयासों को फ़िर धक्का लगा है |लेकिन अगले विधानसभा चुनाव मे
यह तो बिहार की जनता को ही तय करना होगा कि वह विकास और खुशहाली के रास्ते पर जाना
चाहेंगे या फ़िर जातीय राजनीति के दंश को भोगना ही उनकी नियती है |
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