(एल.एस.बिष्ट) - आखिर थम गया 2014 का चुनाव प्रचार | कई मायनों मे गिनीज बुक आफ़ वर्ल्ड
रिकार्ड मे दर्ज कराने लायक रहा है | अमर्यादित भाषा, भाषण और व्यवहार का तो कोई
सानी नही | बडे-बडे शांत स्वभाव साधू बोल पडे और जब बोले तो कफ़न फ़ाड कर बोले | ऐसा
लगा मानो गंदा बोलने की मैराथन दौड हो रही हो, देखो कौन आगे बाजी मारता है |
यही
नही, डरने-डराने और धमकाने की हारर फ़िल्म भी साथ साथ चलती रही | मोदी मैदान मे
क्या आए, गुजरात दंगों के बहाने पूरी डरावनी फ़िल्म ही बना डाली | एक से बढ कर एक
वीडियो, फ़ोटो और कार्टून | काट डालेगा, मार डालेगा, नरसंहार होगा, कत्ले आम होगा
और तो छोडिये यहां तक कि अब मुर्गे नही इंसान काटे जायेगें तक के डायलाग से लबरेज
रहा यह प्रचार | मुस्लिम समुदाय को इस कदर खौफ़ जदा कर दो कि टूट पडें मतदान बूथों
पर |
दूसरी तरफ़ का मोर्चा भी कम नही | दिग्गी राजा
से लेकर केजरीवाल और फ़िर प्रियंका, राहुल की छिछालेदर भी कम नही हुई | 84 के सिख
दंगों का जिन्न बोतल से बाहर निकाल दिया गया | चल भाई तू ही मुकाबला कर सकता है
गुजरात दंगों का |
केजरीवाल वेचारे दिल्ली की कुर्सी छोड बहुत
बुरे फ़ंसे | उनके गालों को मानो सभी ने अपनी हथेलियों के दमखम का पैमाना बना दिया
हो | किसके थप्पड से कितनी सूजन | बात नही बनी तो जूतम पैजार से भी परहेज नही |
भाग भगौडा भाग के नारों ने उनका पीछा ही नही छोडा |
फ़ेसबुक के मित्रों मे वर्षों पुरानी दोस्ती
के बीच तलवारें खिंच गईं | कई ने तो एक दूसरे को अनफ़्रेंड ही कर डाला | जब अंत मे
मित्रों की कुल संख्या देखी तो अच्छे खासे मित्र चुनाव की भेंट चढ चुके थे | मरता
क्या न करता की तर्ज पर बेचारे ऐड फ़्रेन्ड की लिस्ट नये सिरे से तलाशने लगे |
कहानी, गजल, कविता का कोई पुरसाहाल नही | बस राजनैतिक टिप्पणियों ने कब्जा जमा
दिया |
बहरहाल , कुछ भी हो बडा रगीला, सजीला,
डरावना, बदतमीज और गुस्सैल रहा है 2014 का यह चुनाव प्रचार | हमेशा याद रहेगा
लेकिन दिल नही चाहेगा कि इतिहास इसे कभी दोहराये | अलविदा , फ़िर कभी न आना अपने इस
चेहरे के साथ
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