रविवार, 11 मई 2014

चुनाव प्रचार 2014 – कभी लौट कर न आना


     
     (एल.एस.बिष्ट) -  आखिर थम गया 2014 का चुनाव प्रचार | कई मायनों मे गिनीज बुक आफ़ वर्ल्ड रिकार्ड मे दर्ज कराने लायक रहा है | अमर्यादित भाषा, भाषण और व्यवहार का तो कोई सानी नही | बडे-बडे शांत स्वभाव साधू बोल पडे और जब बोले तो कफ़न फ़ाड कर बोले | ऐसा लगा मानो गंदा बोलने की मैराथन दौड हो रही हो, देखो कौन आगे बाजी मारता है | 


     यही नही, डरने-डराने और धमकाने की हारर फ़िल्म भी साथ साथ चलती रही | मोदी मैदान मे क्या आए, गुजरात दंगों के बहाने पूरी डरावनी फ़िल्म ही बना डाली | एक से बढ कर एक वीडियो, फ़ोटो और कार्टून | काट डालेगा, मार डालेगा, नरसंहार होगा, कत्ले आम होगा और तो छोडिये यहां तक कि अब मुर्गे नही इंसान काटे जायेगें तक के डायलाग से लबरेज रहा यह प्रचार | मुस्लिम समुदाय को इस कदर खौफ़ जदा कर दो कि टूट पडें मतदान बूथों पर |

     दूसरी तरफ़ का मोर्चा भी कम नही | दिग्गी राजा से लेकर केजरीवाल और फ़िर प्रियंका, राहुल की छिछालेदर भी कम नही हुई | 84 के सिख दंगों का जिन्न बोतल से बाहर निकाल दिया गया | चल भाई तू ही मुकाबला कर सकता है गुजरात दंगों का |

     केजरीवाल वेचारे दिल्ली की कुर्सी छोड बहुत बुरे फ़ंसे | उनके गालों को मानो सभी ने अपनी हथेलियों के दमखम का पैमाना बना दिया हो | किसके थप्पड से कितनी सूजन | बात नही बनी तो जूतम पैजार से भी परहेज नही | भाग भगौडा भाग के नारों ने उनका पीछा ही नही छोडा |

     फ़ेसबुक के मित्रों मे वर्षों पुरानी दोस्ती के बीच तलवारें खिंच गईं | कई ने तो एक दूसरे को अनफ़्रेंड ही कर डाला | जब अंत मे मित्रों की कुल संख्या देखी तो अच्छे खासे मित्र चुनाव की भेंट चढ चुके थे | मरता क्या न करता की तर्ज पर बेचारे ऐड फ़्रेन्ड की लिस्ट नये सिरे से तलाशने लगे | कहानी, गजल, कविता का कोई पुरसाहाल नही | बस राजनैतिक टिप्पणियों ने कब्जा जमा दिया |

     बहरहाल , कुछ भी हो बडा रगीला, सजीला, डरावना, बदतमीज और गुस्सैल रहा है 2014 का यह चुनाव प्रचार | हमेशा याद रहेगा लेकिन दिल नही चाहेगा कि इतिहास इसे कभी दोहराये | अलविदा , फ़िर कभी न आना अपने इस चेहरे के साथ 


     

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें