वाकई हम एक भेड़चाल समाज है | एक सुर
मे चलने वाले लोग | जब पहला सुर टूटता है तब दूसरे को पकड़ लेते है और
इसी तरह तीसरे सुर को | इस तरह ताले बजाने वाले इस सुर से उस सुर मे शिफ्ट
हो जाते है |
आजकल महिला सशक्तिकरण का शोर है | शोर ही नही जोश भी है और इस
जोश मे कहीं होंश की भी कमी साफ दिखाई दे रही है | किसी महिला के साथ कहीं कुछ
हुआ तो बस दुनिया के सारे पुरूषों को
कठघरे मे खड़ा कर दिया जाता है | फांसी से नीचे तो कोई बात ही नही होती | इसमे एक
बड़ी संख्या उन लोगों की भी है जो दोहरा चरित्र रखते है | मन से
महिलाओं के हितेषी बेशक न हो लेकिन वाह, वाह करने मे सबसे आगे |
इधर कुछ समय से अपने स्वार्थों तक सीमित रहने वाले समाज ने अपने
हित मे एक ऐसा माहौल बना दिया जिसमे दीगर बात करने वाले या अलग सोच रखने वाले के
लिए कोई जगह बची ही नही | अगर किसी ने साहस करके कुछ कहने का प्रयास किया भी
तो महिलावादियों की फौज ने उसे “ बैक टू पेवलियन “ के लिए मजबूर कर दिया | वैसे
इसका एक दुष्परिणाम यह भी निकला कि दुष्कर्म जैसे मामलों मे जैसे जैसे दवा की गई
मर्ज बढ़ता गया | फांसी की सजा के बाबजूद कोई विशेष प्रभाव पड़ता नजर नही आया | दर-असल कारणों को जानने के लिए सभी के विचारों
को समझा जाना जरूरी था लेकिन महिला हितों के झंडाबरदार कुछ भी अपने विरूध्द सुनने
को तैयार नही है | इसलिए तमाम नारों और सख्त कानूनों के बीच समस्या जस
की तस है |
लेकिन जब अति होने लगती है तो कुछ लोग सामने आकर सही और सच कहने
का साहस जुटाते है | ऐसा ही एक प्रयास वकील ऋशी मल्होत्रा ने एक याचिका
के माध्यम से किया है जिस पर उच्चतम न्यायालय 19 मार्च को सुनवाई करेगा | याचिका
मे कहा गया है की आईपीसी की कुछ धाराओं मे सिर्फ पुरूषों को ही अपराधी माना गया है
और महिला को पीड़िता | याचिकाकर्ता का कहना है की “ अपराध और कानून को लिंग
के आधार पर नही बांटा जा सकता | क्योंकि महिला भी उन्हीं आधारों और कारणों से अपराध
कर सकती है जिन कारणों से पुरूष करते है | ऐसे मे जो अपराध करे उसे कानून के मुताबिक दंड मिलना
चाहिए | “
दरअसल दुष्कर्म के मामले मे यह माना जाता है की ऐसा सिर्फ पुरूष
ही करते है महिलाएं नहीं | जबकी ऐसा महिलाए /लड़कियां भी करती है और कई बार तो
सेक्स करने के लिए मजबूर तक कर देती है| कम उम्र
के लड़कों के साथ बहुधा ऐसा होता है | अपने सेक्स जीवन से असतुषट अधेड़ उम्र की महिलाओं
दवारा बहला फुसला कर कम उम्र के किशोरों
का शोषण क्या बलात्कार नही ? ज्यादा उम्र की लड़कियों दवारा भी किशोर उम्र के
लड़कों के शोषण के मामले समाज मे दिखाई देते है लेकिन उसे कम उम्र के लड़के के साथ
दुष्कर्म क्यों नही माना जाता ? मौजूदा
कानून यहीं पर भेदभाव करता है | यही नही अपनी मर्जी से सेक्स संबध बनाने वाली महिला किसी
के दवारा देखे जाने पर ज़ोर जबरदस्ती या शोषण का आरोप पुरूष पर लगा कर अपने को सामाजिक बदनामी से
बचा लेती है और कानून सिर्फ पुरूष को कठघरे मे खड़ा कर देता है | ऐसे मामलो
की भी कमी नही |
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