नींद की
पांखों पर / उडा मैं स्वप्न में / ओस से तरबतर घाटी के उस पार / छ्तों से भी ऊपर /
जंगल से भी ऊपर / जंगल के अंदर तक / सांभर पुकारते थे जहां अपने प्रिय को / और मोर
जहां उडते थे / और फिर भोर हुई.... ..
पहाडों की रानी मसूरी की खूबसूरत वादी से हिमालय को बेहद करीब से निहारने वाले रस्किन
बांण्ड की कहानियों मे पहाड कई रूपों मे दिखाई देता है । उनकी रोचक कहानियों व
यात्रा वृतांत को पढ कर तनिक भी यह आभास नही होता कि यह एक अंग्रेजी मूल के लेखक की
कलम से निकले शब्द हैं । उनके लेखन की यही
विशेषता ही उन्हें दूसरे लेखकों से अलग
रखती है ।
वैसे तो पांच दशकों से भी अधिक समय से वह
लेखन की तमाम विधाओं मे अपनी कलम का जादू बिखेरते रहे हैं । जिनमें बच्चों के लिए “
चिल्ड्रंस ओमनीबस “ , ‘ द ब्लू अम्ब्रेला , ए गेदरिंग आफ फ्रेंडस , टाइगर फार डिनर
, ‘ रस्टी रन अवे ‘ जैसी तमाम रोचक
कहानियों से लेकर दंतक्थाओं, अपराध कथाओं और प्रेम कहानियों का भी
बेशकीमती खजाना है । बच्चों के लिए तो उन्होने इतने रोचक साहित्य का सृजन किया कि उन्हें
आधुनिक युग के दादा जी के रूप मे भी जाना जाने लगा । आज भी बच्चे उन्हें बहुत पसंद
करते हैं । यही नही उनकी रचना “ फ्लाइट आफ पिजंस “ पर 80 के दशक मे एक खूबसूरत फिल्म बनी थि “ जुनून “ श्याम बेनेगल निर्देशित यह फिल्म 1857 के गदर की पृर्ष्ठभूमि मे बनी एक बेहद
सुंदर प्रेम कथा है । कुछ वर्ष पहले इनकी एक और रचना “ सुजैन सेवेन हंसबैंड पर सात खून माफ नाम से एक थ्रिलर फिलम बनी जो
काफी चर्चित रही । लेकिन मुझे तो वह हिमालय मे एक यायावर के रूप मे हमेशा आकर्षित
करते रहे ।
हिमालय के पहाड, जंगल, झरने , नदियां ,
बर्फ से ढकी चोटियां और वहां के लोगों की जिंदगी को लेकर लिखी उनकी कहानियों मे
हिमालय का अतीत व वर्तमान मानो बोलने लगता है । “ मसूरी का लंदौर बाजार “ जैसी
कहानी से लेकर ‘ बूढा लामा ‘ , भुतहा पहाडी की हवा ‘ , चेरी का पेड , तथा ‘ गायक
पक्षी का गीत ‘ जैसी कहानियों मे हिमालय का जो चेहरा दिखाई देता है वह अन्यत्र
दुर्लभ है ।
असाधारण साहित्यिक योगदान के लिए 1992 मे
साहित्य अकादमी पुरस्कार व 1999 मे पदमश्री से सम्मानित किया गया । लेकिन अभी तो
इन्हें बहुत दूर जाना है और बहुत कुछ अपने चाहने वालों को देना है । मसूरी के अपने
घर से वह जिस प्रकृति को निहारते हैं, हिमालय की उन वादियों मे न जाने कितनी
कहानियां खामोश पडी हैं । 19 मई उनके जन्मदिन ( 19.5.1934 ) पर यही कामना है कि उनकी कलम का जादू बरसों बरस बरकरार रहे ।
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