शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

सियासत के यह राबिनहुड





भागलपुर जेल से रिहा हुए बाहुबली नेता शहाबुद्दीन की रिहाई ने बिहार  की राजनीति को एक बार फिर गरमा दिया है । इस सियासी घमासान मे सत्तारूढ जेडीयू-आर.जेडी सरकार मे उथल पुथल मची है । बात सिर्फ इतनी भर नही । बल्कि  जेल से छूटते ही शहाबुद्दीन के इस वक्तब्य ने कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो " परिस्थितिवश मुख्यमंत्री " हैं जो जनता के नही, गठबंधन के नेता हैं" राजनीतिक पारे को उच्चतम बिंदु तक पहुंचा दिया है । किसी भी मुख्यमंत्री को यह बात क्यों पसंद आने लगी । अब खबर है कि नीतीश सरकार जमानत के खिलाफ उच्चतम न्यायालय जाने का मन बना रही है।

दर-असल इस बाहुबलि नेता की रिहाई इसलिए भी चर्चा और विरोध का विषय बनी हुई है क्योंकि जो कांड हुआ उसने बिहार सहित पूरे देश को हिला कर रख दिया था । 2004 मे 16 अगस्त को सीवान के एक व्यापारी चंद्रकेश्वर उर्फ चंदा बाबू के दो बेटों को अपहरण के बाद वीभत्स तरीके से तेजाब से नहला कर और उनके शरीर के टुकडे कर ह्त्या कर दी गई थी । कहा जाता है कि सबसे बडे बेटे राजीव रोशन को अपने भाईयों की वीभत्स मौत देखने के लिए मजंबूर किया गया और बाद मे एक्मात्र गवाह् बडे बेटे को सुनवाई के दौरान 16 जून 2014 को गोली मार कर ह्त्या कर दी गई ।

इसके अलावा सीवान मे पत्रकार राजदेव रंजन की दर्दनाक तरीके से हत्या के शक की सुई भी शहाबुद्दीन से ही जुडी थी । यह तो वह घटनाएं हैं जो देशभर मे मीडिया व राजनीतिक गलियारों मे चर्चा का विषय बनीं तथा जिन पर खूब सियासी रोटियां सेंकी गईं । लेकिन इस बाहुबली नेता के खाते मे तो न जाने कितनी हत्याओं, अपहरण व फिरौती के मामले दर्ज हैं जिनका हिसाब रखना भी आसान नहीं ।

बहरहाल बिहार की राजनीति मे शहाबुद्दीन की रिहाई क्या गुल खिलायेगी यह तो समय ही बतायेगा लेकिन इतना अवश्य है कि आतंक का प्रर्याय बने इस नेता ने देश के लोकतंत्र, न्यायापालिका व सरकारी रवैये पर जरूर गंभीर सवाल उठाये हैं । यही नही, मौजूदा राजनीतिक संस्कृर्ति मे अपराध व अपराधियों के बढते वर्चस्व पर भी सोचने के लिए मजबूर किया है । हम स्वीकार करें या न करें इस घटना ने देश के राजनैतिक भविष्य की तस्वीर को भी सामने रखा है ।

गौरतलब है कि आज हम जिस शहाबुद्दीन को राजनीति के मंच पर एक आतंक के रूप मे देख रहे हैं, वह 80 के दशक मे छोटे मोटे अपराध करने वाला एक छुटभैय्या अपराधी भर था । लेकिन किस तरह राजनीति ने उसे अपराध की दुनिया मे एक चमकता सितारा बना दिया, उसकी एक अलग ही कहानी है । यह कहानी देश की राजनीति के उस कुरूप चेहरे को सामने लाती है जिसे अब स्वीकार कर लिया गया है । वोट राजनीति के लोभ ने एक साधारण अपराधी को रातों रात आर.जे.डी का एक ऐसा ताकतवर नेता बना दिया जिसके आगे पूरा प्रशासनिक तंत्र नतमस्तक हो गया । क्या यह कम आश्चर्यजनक नही कि आज इस बाहुबलि के नाम से लोग सीवान को जानते हैं । उसके इजाजत के बिना यहां एक पत्ता भी नही हिल सकता । बडे बडे पुलिस अधिकारी उसे सलाम बजा कर अपनी नौकरी करते हैं ।

आज सवाल सिर्फ शहाबुद्दीन का नही है । ऐसे न जाने कितने अपराधी राजनीति की छतरी तले देश के प्रशासनिक तंत्र को चुनौती दे रहे है ।  आखिर क्यों हमारी ससंद व विधानसभाएं अपराधी तत्वों की शरणगाह बनती जा रही हैं । दरअसल हमने ईमानदारी से स्वंय के गिरेबां में झांकने का प्रयास कभी नही किया । कहीं ऐसा तो नही कि जाने- अनजाने इसमे हमारी भी भागीदारी रही हो ।
दरअसल कई बार हम अपने स्वार्थ में व्यापक सामाजिक हितों की अनदेखी कर देते हैं । हमारी सोच इतनी संकीर्ण हो जाती है कि हमे सिर्फ अपने जिले, शहर या मुहल्ले का ही हित दिखाई देता है और राबिनहुड जैसे दिखने वाले माफियों, गुंडों व बदमाशों को इसका लाभ मिलता है । अगर कोई अपराधी तत्व हमारे मुहल्ले की सड्कों व नालियों आदि का काम करवा लेता है और हमारे मुहल्ले का निवासी होने या किसी अन्य प्रकार के जुडाव से हमारे काम करवा लेता है तो हम उसके पक्ष मे आसानी से खडे हो जाते हैं । यहां हम अक्सर यह भूल जाते हैं कि समाज के हित मे इसे ससंद या विधानसभा के लिए चुनना इस लोकतंत्र के भविष्य के लिए घातक होगा । ऐसे बहुत से उदाहरण मिल जायेगें जहां समाज की नजर मे एक अपराधी,  मोहल्ले या शहर का "भैय्या " बन चुनाव मे जीत हासिल कर लेता है । दरअसल अपने तक सीमित हमारी सोच ऐसे लोगों का काम आसान करती है ।

हमारी इस सोच का इधर कुछ वर्षों मे व्यापक प्रसार हुआ है राजनीतिक अपराधीकरण मे हमारी यही सोच कुछ गलत लोगों को ससंद व विधानसभाओं मे पहुंचाने मे सहायक रही है । यही कारण कि ऐसे कई नाम भारतीय राजनीति के क्षितिज पर हमेशा रहे हैं । जिन्हें समाज का एक बडा वर्ग तो अपराधी , माफिया या बदमाश मानता है लेकिन अपने क्षेत्र से वह असानी से जीत हासिल कर सभी को मुंह चिढाते हैं ।
अब अगर हमे इन बाहुबलियों, माफियों, गुंडों व बदमाशों को रोकना है तो अपने संकीर्ण हितों की बलि देनी होगी । व्यक्ति का चुनाव समाज व देश के व्यापक हित मे सोच कर किया जाना चाहिए । अगर आपके लिए भैय्या बना उम्मीदवार समाज के बहुसंख्यक लोगों के लिए एक अपराधी तत्व है तो उसे आपको भी अपराधी ही मानना होगा । अन्यथा एक दिन यह भैय्ये लोकतंत्र  के चेहरे को पूरी तरह से बदरंग बना देगें ।

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