यहां
महक वफाओं की, मोहब्बतों
का रंग है,
ये
घर तुम्हारा ख्वाब है,
ये घर मेरी
उमंग है
ये
तेरा घर ये मेरा घर, किसी
को देखना हो गर...........
हिमालय
की घाटियों मे पहाड की ढालों
पर मिट्टी, पत्थर
और लकडी से बने पारंपरिक मकान
कभी यहां की ग्रामीण जिंदगी
का हिस्सा रहे हैं । इनसे
पीढीयों का जो एक गहरा भावनात्मक
रिश्ता रहा है अब वह बिखरने
लगा है । हिमाचल के गांव हों
या फिर उत्तराखंड के, अब
इन कलात्मक मकानों के प्रति
मोह कम होता जा रहा है । इनकी
जगह ले रहे हैं सीमेंट,
कंकरीट ,
ईंट और सरिया
से बने मकान । मैदानी शहरों
की भवन निर्माण शैली का प्रभाव
अब पहाड के इन गांवों मे साफ
दिखाई देने लगा है ।
एक
समय था जब हिमालय के इन गांबों
मे पत्थरों को कांट छांट कर,
एक के ऊपर एक
रख कर चिना जाता था । सीमेंट
के प्रयोग के बिना ही पूरा
मकान बन कर खडा हो जाता और इतना
मजबूत कि बरसों बरस यूं ही
सीना ताने खडा रहता । यहां
के स्थानीय कारीगर इस भवन
निर्माण शैली मे पारंगत हुआ
करते थे । पहाड के वाशिदों की
कई पीढीयां इन मकानों मे रह
कर पली बढी हैं ।
लेकिन
बढती समृध्दि और बदलती जीवन
शैली ने बहुत कुछ बदल दिया है
। अब पहाड के गांवों मे भी
सीमेंट और ईंट से बने मकानों
की संख्या बढती जा रही है ।
इन्हें यहां समृध्दि का प्रतीक
भी माना जाने लगा है । लेकिन
एक पीढी का जो लगाव इन कलात्मक
पारंपरिक पहाडी मकानों से
रहा है वह इन सीमेंट कंकरीट
के मकानों से कहां ? अब
दिखाई नही देतीं पत्थर की
ढलानदार छ्तों पर सूखती हुई
मक्की या दालों के फलियां ।
चूल्हे से उठता धुंआ जो छ्तों,
दरवाजों पर
लगी लकडी को मजबूती दिया करता
था और छ्ज्जे की वह गुनगुनी
धूप ।
चीड
और देवदार के पेडों के बीच खडे
यह ईंट सीमेंट से बने मकान
पहाड मे उतने ही अजनबी लगते
हैं जितना एक देश के वाशिंदे
गैर मुल्क में । लेकिन शायद
यही है जिंदगी जो बदल रही है
हिमालय की घाटियों, ढालों
और वादियों मे ।
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