कुछ वर्ष पूर्व एक फिल्म आई थी " नि:शब्द " । अमिताभ बच्चन और नई तारिका जो दुर्भाग्य से अब इस दुनिया मे नही है यानी जिया खान की अदाकारी से ज्यादा इस फिल्म की कथावस्तु चर्चित व विवादास्पद रही थी । दर-असल इस फिल्म मे एक उम्रदराज व्यक्ति (अमिताभ) का अपनी बेटी की सोलह वर्षीय सहेली(जिया खान) के प्रति आकर्षण को बडी खूबसूरती से परदे पर फिल्माया गया था । इस फिल्म का विवादास्पद व विरोध का विषय बनना स्वाभाविक ही था । क्योंकि जिंदगी के जिस पहलू को छुआ गया था उस पर रूढिवादी सोच की मोटी चादर डालना ही बेहतर व सुविधाजनक समझा जाता रहा है ।
इधर दिग्विजय सिंह व अमृता राय ने असल जिंदगी मे उन मानवीय भावनाओं को सतह पर ला खडा किया है जिन पर रूढिवादी सोच की मोटी चादर हटा कर अभी गहंनता व पूरी संवेदनशीलता से सोचा जाना बाकी है । ऐसे मे 68 वर्ष के उम्रदराज किसी व्यक्ति का 44 वर्षीय किसी युवती से प्यार करना व फिर विवाह बंधन मे बंधना सवाल तो उठायेगा ही । दर-असल यह इंसानी जिंदगी का एक ऐसा संवेदनशील पहलू है कि प्यार, कसमें-वादे, बरखा-सावन जैसे शब्दों पर स्याही उडेलने वाले तमाम कवि व शायर भी आंखें तरेरते देखाई देते हैं । प्यार को उसके कई कई रूपों मे परदे पर फिल्माने वाले फिल्मकार भी असल जिंदगी मे " मोहब्बत जिंदाबाद " कहने मे सकुचाते दिख रहे हैं । यही नही, किसी अदालत मे लव मेरिज कराने वाले मजिस्ट्रेट और द्स्तावेजों पर लव मैरिज की मुहर लगाने वाले भी सहजता से इस प्यार पर भी अप्नी मुहर लगा सकेंगे, कहना मुश्किल है । यानी सदियों से प्यार का दुश्मन समझे जानी वाली निष्ठुर दुनिया यहां भी पसीजती नजर नही आ रही ।
दर-असल प्यार व काम भावना को हमने उम्र की सीमाओं मे बांध दिया है। जब कभी इन सीमाओं का उल्लघंन होता दिखाई देता है तो हम असहज हो जाते हैं । अपने आप से पूछ्ने लगते हैं ' ऐसा कैसे हो सकता है ' ? । जबकि वास्तविक सच यह है कि प्यार व काम भावना किसी उम्र की मोहताज नही होती । थोपे गये बंधन व आदर्श इन्हें अनचाहे ही कैदी बना देते हैं । जब कभी कोई प्रेमी इनमे विद्रोह के स्वर भर देता है तो समाज की बनाई गई जेल की दीवारों पर दरकने की आवाज सुनाई देने लगती है और समाज अपनी जेल बचाने के लिए विरोध के स्वर ऊंचा कर देता है ।
दिग्गि राजा व अमृता की प्रेमकथा इसी विद्रोह का प्रतीक है । वैसे भी देखा जाए तो इन प्रेमियों ने प्यार को उसके सही अर्थों मे परिभाषित ही किया है कि प्यार उम्र का मोहताज नही होता । वैसे भी सच तो यह है कि प्यार की दुनिया है ही ऐसी कि कुछ चीजें कभी समझ मे नही आतीं । अगर हम इस प्यार को 68 और 44 के आंकडे से बाहर निकल कर देखें तो शायद यहां भी प्यार के वही रंग दिखेंगे जो सदियों से इंसान को सम्मोहित करते आये हैं और जिन पर दिमाग नही दिल की हुकूमत चलती है । वही प्यार तो है जिसकी तरंगों ने दुनिया के न जाने कितने देशों का इतिहास ही नही भूगोल भी बद्ल दिया । वही प्यार जिसमे राजा रंक भी हुए हैं और किसी रूपवती ने किसी रंक को अपने दिल मे बसाने मे कोई संकोच भी नही किया ।प्यार की इस दुनिया मे अपने प्यार को पाने के लिए जान लेने वालों का भी इतिहास है और अपने प्यार के लिए जान गवाने वालों का भी । इसलिए प्यार की इस तिलिस्मी, खूबसूरत दुनिया मे गुड लक दिग्गि राजा-अमृता ।
इधर दिग्विजय सिंह व अमृता राय ने असल जिंदगी मे उन मानवीय भावनाओं को सतह पर ला खडा किया है जिन पर रूढिवादी सोच की मोटी चादर हटा कर अभी गहंनता व पूरी संवेदनशीलता से सोचा जाना बाकी है । ऐसे मे 68 वर्ष के उम्रदराज किसी व्यक्ति का 44 वर्षीय किसी युवती से प्यार करना व फिर विवाह बंधन मे बंधना सवाल तो उठायेगा ही । दर-असल यह इंसानी जिंदगी का एक ऐसा संवेदनशील पहलू है कि प्यार, कसमें-वादे, बरखा-सावन जैसे शब्दों पर स्याही उडेलने वाले तमाम कवि व शायर भी आंखें तरेरते देखाई देते हैं । प्यार को उसके कई कई रूपों मे परदे पर फिल्माने वाले फिल्मकार भी असल जिंदगी मे " मोहब्बत जिंदाबाद " कहने मे सकुचाते दिख रहे हैं । यही नही, किसी अदालत मे लव मेरिज कराने वाले मजिस्ट्रेट और द्स्तावेजों पर लव मैरिज की मुहर लगाने वाले भी सहजता से इस प्यार पर भी अप्नी मुहर लगा सकेंगे, कहना मुश्किल है । यानी सदियों से प्यार का दुश्मन समझे जानी वाली निष्ठुर दुनिया यहां भी पसीजती नजर नही आ रही ।
दर-असल प्यार व काम भावना को हमने उम्र की सीमाओं मे बांध दिया है। जब कभी इन सीमाओं का उल्लघंन होता दिखाई देता है तो हम असहज हो जाते हैं । अपने आप से पूछ्ने लगते हैं ' ऐसा कैसे हो सकता है ' ? । जबकि वास्तविक सच यह है कि प्यार व काम भावना किसी उम्र की मोहताज नही होती । थोपे गये बंधन व आदर्श इन्हें अनचाहे ही कैदी बना देते हैं । जब कभी कोई प्रेमी इनमे विद्रोह के स्वर भर देता है तो समाज की बनाई गई जेल की दीवारों पर दरकने की आवाज सुनाई देने लगती है और समाज अपनी जेल बचाने के लिए विरोध के स्वर ऊंचा कर देता है ।
दिग्गि राजा व अमृता की प्रेमकथा इसी विद्रोह का प्रतीक है । वैसे भी देखा जाए तो इन प्रेमियों ने प्यार को उसके सही अर्थों मे परिभाषित ही किया है कि प्यार उम्र का मोहताज नही होता । वैसे भी सच तो यह है कि प्यार की दुनिया है ही ऐसी कि कुछ चीजें कभी समझ मे नही आतीं । अगर हम इस प्यार को 68 और 44 के आंकडे से बाहर निकल कर देखें तो शायद यहां भी प्यार के वही रंग दिखेंगे जो सदियों से इंसान को सम्मोहित करते आये हैं और जिन पर दिमाग नही दिल की हुकूमत चलती है । वही प्यार तो है जिसकी तरंगों ने दुनिया के न जाने कितने देशों का इतिहास ही नही भूगोल भी बद्ल दिया । वही प्यार जिसमे राजा रंक भी हुए हैं और किसी रूपवती ने किसी रंक को अपने दिल मे बसाने मे कोई संकोच भी नही किया ।प्यार की इस दुनिया मे अपने प्यार को पाने के लिए जान लेने वालों का भी इतिहास है और अपने प्यार के लिए जान गवाने वालों का भी । इसलिए प्यार की इस तिलिस्मी, खूबसूरत दुनिया मे गुड लक दिग्गि राजा-अमृता ।
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