शनिवार, 4 अक्तूबर 2014

बदइंतजामी बुलाती है मौत




 ( L.S. Bisht ) -   दशहरा के अवसर पर पट्ना के गांधी मैदान में हुई भगदड मे कितने लोग मारे गये और कितने घायल हुए, यह सवाल इतना महत्वपूर्ण नहीं है | अगर मौतों की संख्या पर ही कुछ सोचा जाना जरूरी है तो यही कहा जा सकता है कि मरने वालों में इस बार भी अधिकांश महिलाएं व बच्चे ही हैं | दुखद तो यह है कि यह वही गांधी मैदान है जहां से आजादी से जुडे कई आंदोलन हुए | चंपारण आंदोलन तथा 1942 का भारत छोडो आंदोलन का भी यह मैदान गवाह बना है | जयप्रकाश नरायण ने 1974 में इसी मैदान से क्रांति की अलख जगाई थी | लेकिन 3 अक्टूबर की शाम को इस मैदान ने भयावह मौत का मंजर देखा |
     इस तरह के हादसों के कारणों की तह पर जाएं तो बदइंतजामी ही इसका एकमात्र कारण उभर कर सामने आती है | यह घटना इसी लापरवाही का परिणाम है | लेकिन इससे ज्यादा शर्मनाक मंजर तब देखने को मिलता है जब हमारे राजनेता ऐसी घटनाओं को लेकर बयानबाजी करने लगते हैं | मृतकों के परिजनों के साथ सहानुभूति व्यक्त करते हुए ऐसा कुछ कहने लगते हैं कि वह कोढ पर खाज का ही काम करता है | एक दूसरे पर आरोप लगाने की होड़ सी मच जाती है
     इस घटना का मूल कारण मेले मे फ़ैली यह अफ़वाह है कि कहीं पर बिजली का तार टूट कर गिर गया है | यह सुनते ही लोग जान बचाने के लिए भागने लगे और इस भगदड में महिलाएं और बच्चे मौत के  आसान शिकार बने | वह तेजी से दौड न पाने के कारण लोगों के पैरों तले कुचल कर मारे गये |
     लेकिन ऐसा नही है कि ऐसा पहली बार हुआ हो | हमारे तीर्थ स्थलों, धार्मिक स्थानों व धार्मिक आयोजनों पर पहले भी इस तरह की घट्नाएं कई बार हो चुकी हैं | अभी लगभग ऐसी ही घटना छ्ठ पूजा के अवसर पर हुई थी | उस समय भी भगदड में मरने वालों मे महिलाओं और बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा थी | लेकिन उस घटना से भी राज्य सरकार ने कोई सबक नहीं सीखा और परिणामस्वरूप लगभग उसी तरह की बदइंतजामी के कारण यह हादसा हुआ |
     पिछ्ले वर्ष अक्टूबर में दशहरे के अवसर पर ही मध्यप्र्देश के दतिया जिले में ऐसी एक भगदड में 90 लोगों को अपनी जान गंवानी पडी थी | इसमें 100 से ज्यादा लोग बुरी तरह घायल हुए थे | यहां पर लगभग 1,50,000 लोग रत्नागढ मंदिर मे द्शहरा मनाने आये थे |  नदी पर बना पुल जो मंदिर को जोडता है उसकी रैलिंग टूटने से अचानक भगदड मच गई | कुछ लोग पैरों के नीचे आने से कुचल कर मृत्यु का ग्रास बने और कुछ ने नदी मे छ्लांग लगा कर तैर न पाने के कारण डूब कर जलसमाधि ले ली | यह एक बेहद दर्दनाक हादसा था |
     अभी हाल में 25 अगस्त को मध्यप्रदेश में हजारों श्र्ध्दालु चित्रकुट क्षेत्र में कामतानाथ मंदिर मे इकट्ठे हुए थे | भीड़ काफ़ी ज्यादा थी और उस हिसाब से इंतजाम कम | अचानक कुछ लोग भीड़ के दवाब के कारण गिर पडे और फ़िर एक दूसरे पर गिरते ही चले गए | इस घटना मे भी 10 लोग मारे गये जिसमें 5 महिलाएं थीं | लगभग 60 लोग घायल हुए थे |
     इस घटना के कुछ समय पूर्व 10 फ़्ररबरी, 2013 को इलाहाबाद मे कुंभ मेले के अवसर पर रेलवे स्टेशन मे सीढीयों की रैलिंग टूटने से भगदड मची थी और यहां भी 36 लोगों को जिनमें 26 महिलाएं थीं अपनी जान गंवानी पडी | इस घटना के मामले में कुछ लोगों का मानना था कि पुलिस दवारा अचानक लाठी चार्ज करने से यहां भगदड हुई थी | लेकिन कारण कुछ भी रहे हों प्रशासनिक लापरवाही की कीमत लोगों को अपनी जान देकर चुकानी पडी | तब तत्कालिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने भी बतौर दस्तूर घटना पर दुख जताया था जैसा कि हर ऐसी दुर्घटना के बाद होता है | लेकिन शायद ही आगे के लिए कुछ सोचा गया हो |
     इस तरह की य्ह चंद घटनाएं नहीं हैं | समय समय पर यह दुर्घटनाएं होती रही हैं | अप्रैल, 2010 में हरिदवार मे शाही स्नान के समय भी ऐसी ही भगदड में सात लोग मारे गये थे | नासिक में गोदावरी नदी के समीप  कुंभ मेले के अवसर पर भी भगदड में 40 लोगों को अपनी जान गंवानी पडी थी और यहां भी लगभग 125 लोग घायल हुए थे | हरिद्वार की उस घटना को लोग अभी भूले नहीं हैं जब ब्रहमकुंड एक मृत्यु कुंड मे तब्दील हो गया था | 47 तीर्थयात्रियों की अकाल मौत हुई और सैकडों घायल हुए थे | 7 मार्च 1997 को अजमेर में दरगाह मे उर्स के अवसर पर हुई घटना को भी भुलाया नही जा सकता | देश विदेश के तमाम लोगों ने उस घटना को देखा था | उस समय वहां लगभग ढाई लाख लोग जमा थे | सच तो यह है कि ऐसी घटनाओं की एक लंबी फ़ेहरिस्त है |
     इन तमाम घटनाओं पर नजर डाले तो पता चलता है कि सभी दुर्घटनाएं मानवीय भूलों का परिणाम रही हैं | अक्सर भीड को देखते हुए स्थानीय प्रशासन जरूरी इंतजाम करने मे असफ़्ल रहता है | लाखों लोगों की भीड के लिए सुविधाजनक आवागमन जरूरी होता है | इसमे थोडी सी भी चूक दुर्घ\टना को न्योता दे सकती है | अधिकांश मामलों मे बडी भीड के प्रवेश व निकासी की उचित व्यवस्था न होने के कारण दुर्घटनाएं हुई हैं | मंदिर या धार्मिक स्थ्ल के पास संकरे स्थान पर भीड. का उचित और प्रभावी नियंत्रण बहुत जरूरी है अक्सर इसमे चूक होने की संभावना बनी रहती है | कई दुर्घटनाएं इसी कारण हुई हैं विशेष कर हमारे प्राचीन धार्मिक स्थलों पर | पुलों पर भीड का दवाब ज्यादा न पडे इस पर पहले से ही सोचा जाना जरूरी है और इसके लिए वैक्ल्पिक व्यवस्था की जानी चाहिए |
     पटना मे हुए इस हादसे ने एक बार फ़िर सोचने को मजबूर कर दिया है | अब यह जरूरी है कि इस प्रकार के सार्वजनिक मेलों, उत्सवों तथा धार्मिक पर्वों पर सभी जरूरी सुरक्षा उपाय पहले से ही कर लिए जाएं | आवागमन की उचित व्यवस्था के साथ ही आपातकालीन व्यवस्था का होना भी जरूरी है | सबसे महत्वपूर्ण है भीड. का प्रभावी नियंत्रण तथा जरूरत पडने पर वैकल्पिक व्यवस्था का होना | हमें यह सीख लेनी ही होगी कि यह सभी घटनाएं बदइंतजामी व प्रशासनिक भूलों का ही परिणाम रही हैं | इन्हें आसानी से रोका जा सकता था | आगे ऐसा न हो इस पर गंभीरता से सोचा जाना जरूरी है तथा ऐसे अवसरों के लिए एक त्रुटिविहीन तंत्र विकसित किया जाना चाहिए |
      
    

     

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