शुक्रवार, 21 दिसंबर 2018

अब किस ठौर हमारी नाव



गुजरात चुनावों के बाद से ही ऐसा लगने लगा था कि देश मे अल्पसख्यक राजनीति अब एक नई  करवट ले रही है | मोदी के गृहराज्य व भाजपा के एक मजबूत गढ मे जिस तरह से कांग्रेस ने अच्छा मुकाबला किया उसी को देखते हुये राहुल गांधी को यह एहसास हो चला था कि उदार हिंदु कार्ड खेलना लाभदायक रहा  |

      गुजरात चुनाव के बाद हाल मे हुये पांच राज्यों मे तो सेक्यूलर समझी जाने वाली कांग्रेस पूरी तरह से एक हिंदुवादी पार्टी मे तब्दील होती दिखाई दी और शिवभक्ति से लेकर रामभक्ति का जो नजारा राहुल गांधी ने दिखाया  उसका सीधा परिणाम मध्यप्रदेश, राजस्थान व छ्त्तीसगढ की विजय के रूप मे सामने आया | इन पांच राज्यों मे जिस तरह से राहुल गांधी पूरी तरह एक हिंदु के रूप मे सामने आये , उसे देख कर अब सवाल उठने लगा है कि क्या सत्तर सालों के बाद कांग्रेस अपनी धर्मनिरपेक्षता का लबादा छोडने की राह पर चल पडी है ? क्या कांग्रेस पार्टी को यह एहसास हो चला है कि हिंदु बहुल इस देश मे मुस्लिम परस्ती का लेबल अब उसे चुनावी लाभ नही दे रहा ?

      गौर से देखें तो सोच मे यह बदलाव स्पष्ट तौर पर दिखाई देने लगा है | कांग्रेस इन पांच राज्यों के चुनावों मे एक सेक्यूलर पार्टी कम हिंदुवादी पार्टी ज्यादा नजर आ रही थी | अब तो यह लगता है कि कांग्रेस धीरे धीरे एक राजनीतिक पार्टी के रूप मे अपनी उस छ्वि को खत्म करना चाहेगी जो सत्तर वर्षों मे उसकी रही है| ऐसा प्रयास दिख भी रहा है | सवाल इस बात का भी है कि आखिर कांग्रेस जैसी पार्टी जिसने लंबे समय तक अपने को एक सेक्यूलर पार्टी के रूप मे स्थापित किया व सफ़लतापूर्वक चुनावों मे जीत हासिल की अब हिंदु चेहरा लगाने को क्यों मजबूर हो ग ई ? सवाल भी हैं और शंकाएं भी | इन सवालों का मंथन भी बेहद जरूरी है |

      वैसे देखा जाये तो आजादी के बाद से ही देश मे मुस्लिम राजनीति एक अलग सांचे मे ढल चुकी थी जिसमे अल्पसंख्यक होने का सामाजिक नुकसान भी था और राजनीति मे हाशिये मे प्डे रहने का भय भी | जैसा कि विभाजन के समय हुआ उच्च व मध्यम वर्ग ने पाकिस्तान की राह पकडी और अपेक्षाकृत गरीब मुस्लिम समुदाय ने भारत मे रहना मुनासिब समझा | इस पिछ्डे समुदाय की सोच मे निहित भय को राजनीतिक दलों ने भांप लिया और उसके दोहन के लिये उनका राजनीतिक इस्तेमाल किया जाने लगा | इस भय के दोहन मे सबसे आगे बढ कर कांग्रेस ने हिस्सा लिया और भारतीय मुसलमानों ने भी कांग्रेस को अपना रहनुमा मान  लिया |

      कांग्रेस को लंबे समय तक कोई विषेष राजनीतिक चुनौती नही मिली और वह मुसलमानों की एक मात्र पसंदीदा पार्टी के रूप मे बनी रही  | उस पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप भी लगते रहे लेकिन  वह इन सबसे बेपरवाह  अपनी राजनीतिक शैली मे ही आगे बढती रही | लेकिन राजनीति ने करवट बदली और देश मे गैर कांग्रेसी सरकारों की शुरूआत हुई | इस बीच भाजपा का तेजी से देश मे फ़ैलाव हुआ तथा उसे एक बडे हिंदु वर्ग दवारा स्वीकार भी किया जाने लगा | दुनिया भर मे पैर पसारते मुस्लिम  आतंकवाद ने भी हिंदु विचारधारा को मजबूत करने मे अहम भूमिका निभाई | पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ने आग मे घी का काम किया | यही नही कांग्रेसी शासन मे बढते भ्र्ष्टाचार ने भी लोगों को सोचने के लिये मजबूर कर दिया

      इन सभी के चलते 2014 के आम चुनावों मे जिस तरह से कांग्रेस का सफ़ाया ही हो गया उसने स्वंय कांग्रेस को सोचने के लिये मजबूर कर दिया | उसे यह समझने मे समय नही लगा कि देश का एक बडा समुदाय भाजपा की राष्ट्र्वादी व हिंदु विचारधारा को देशहित मे सही मानने लगा है और इस राजनीतिक  दवाब ने उसे भी हिंदु समर्थक दिखाई देने के लिये मजबूर कर दिया | गुजरात चुनाव मे उसे इसका फ़ायदा भी मिलता दिखाई दिया और इन हाल के चुनावों मे तो उसे अप्रत्याशित विजय मिली | अब वह इसी रास्ते मे आगे बढती दिखाई देने लगी है |


      लेकिन अब सवाल मुस्लिम समुदाय के सामने है | अब तक वह
 कांग्रेस के साथ रहा है | भाजपा के बढते प्रभाव के कारण भी  उसे कांग्रेस के साथ रहने मे ही अपना हित नजर आया | यह दीगर बात है कि कुछ राज्यों मे उसे दूसरे क्षेत्रीय दलों के साथ रहना ज्यादा सुविधाजनक व लाभदायक रहा जैसे कि उत्तरप्रेदेश मे सपा व बसपा के साथ | लेकिन  चूंकि इन दलों की हैसियत राज्य तक सीमित  है | इसलिये राष्ट्रीय पार्टी के रूप मे मुस्लिम समुदाय की पसंद अभी तक कांग्रेस ही रही | लेकिन अब जब कांगेस स्वंय एक हिंदु पार्टी के रूप मे अपने को प्रस्तुत करने लगी है , सवाल अब इनके सामने है कि वह कहां जाएं ?

      यह भी संभव है कि वह भाजपा के भय और तीखे हिंदुवाद के सामने कांग्रेस के उदार हिंदुत्व को ही स्वीकार कर ले या फ़िर क्षेत्रीय दलों के साथ  अपने हित देख कर अलग अलग राज्यों मे अलग अलग दलों के समर्थन मे रहे | इस बात से भी इंकार नही किया जा सकता कि मुस्लिम समुदाय के बीच से ही कोई नेतृत्व उभर कर सामने आये | बहरहाल उत्तर  प्रदेश , बिहार जैसे राज्यों मे कांगेस की बदलती छ्वि के साथ दूसरे दलों ने मुस्लिम वोटों के लिये कवायद शुरू कर दी है | लेकिन अब जब उनकी पुरानी पार्टी उनसे ही  दूरी बनाने लगी है जिससे वर्षों का साथ रहा है,  कोई फ़ैसला लेना आसान नही होगा |  
     

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