पुलवामा हमले ने एक बार
फ़िर पूरी दुनिया को सोचने के लिये मजबूर कर दिया है | भारतीय सैनिकों की इस शहादत
का विश्व बिरादरी पर क्या और कितना प्रभाव पडेगा, यह तो आने वाला समय ही बतायेगा
लेकिन इस बात से इंकार नही किया जा सकता कि
आज पूरा विश्व आतंकवाद के जिस चेहरे को देख रहा है वह आने वाले कल मे और भी
भयावह होगा | लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि अभी भी बहुत से देश इसके जहर को या
तो समझ नहीं पा रहे हैं या फिर राजनैतिक व धार्मिक कारणों के चलते समझना ही नहीं
चाहते । वैसे भी अगर आतंकवाद के इतिहास पर नजर डालें तो शुरूआती दौर में कुछ देशों
के निहित स्वार्थों के चलते ही आतंकवाद का प्रसार हुआ था । यह दीगर बात है कि अब
अपने ही हितों के लिए खडा किया गया यह दैत्य पूरी दुनिया के वजूद के लिए ही खतरा
बन रहा है ।
दर्-असल सत्तर व अस्सी के दशक में दुनिया के कई देश अपने निहित स्वार्थों
के लिए आतंकवाद को बढावा देते आये थे और अपने को बडी चालाकी से इससे अलग रखने में
भी सफल रहे थे । दूसरे देशों में अस्थिरता पैदा करने के लिए आतंकवाद का सहारा लिया
जाता रहा । कई ऐसे देश रहे जिन्होने आतंकवादी संगठनों को बाकायदा सुविधाएं उपलब्ध
कराईं और दूसरे राष्ट्रों के विरूध्द उकसाने का काम किया ।
इस संदर्भ में फिलिस्तीनी मुक्ति मोर्चे ( पी.एल.ओ.) को ही लें । यह संगठन
1964 में फिलिस्तीन लोगों को एक स्वतंत्र फिलिस्तीन राज्य के निर्माण हेतु बनाया
गया था । उसे तत्कालीन कई आतंकवादी संगठनों का समर्थन प्राप्त था । उस दौर में एक
और संगठन था लेबनानी सशस्त्र क्रांतिकारी ग्रुप । इसकी शुरूआत 1979 में हुई थी ।
अमरीका इजराइल और फ्रांसीसी सशस्त्र सेवाओं की दासता से मुक्ति पाने के लिए तथा
फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना हेतु यह संगठन बनाया गया था । इस संगठन का संबध भी कई
आतंकवादी संगठनों से रहा है । सीरिया सरकार का भी इसे परोक्ष समर्थन प्राप्त था ।
1975
मे गठित एक संगठन है सीक्रेट आर्मी फार द लिबरेशन आफ आर्मीनिया । इस
संगठन का उद्देश्य रहा है प्रथम विश्व युध्द के समय आर्मीनियाई लोगों के सामूहिक
हत्याकांड की जिम्मेदारी तुर्की दवारा स्वीकार कराने हेतु उस पर दबाव डालना । यह
आज भी सक्रीय है । इसी तरह 1970 मे गठित एक संगठन है जैपनीज रेड आर्मी । इसका
उद्देशय रहा है जनता का जनतंत्र स्थापित करना । इसे लीबिया , उत्तरी कोरिया जैसे अनेक देशों का समर्थन मिलता रहा ।
दक्षिण अफ्रीका में जातीय राजनीति के विरूध्द एक वर्गविहीन सरकार की
स्थापना करने के उदेश्य से बनाया गया संगठन ' अफ्रीकी नेशनल
कांग्रेस ' भी काफी चर्चित रहा । इसे उस दौर में कई देशों का
परोक्ष समर्थन प्राप्त था । इसी तरह कई इस्लामिक आतंकवादी संगठन भी समय समय पर
आतंक फैलाने का काम करते रहे । ओसामा बिन लादेन का ' अल
कायदा ' तो आतंक का एक नया चेहरा बन कर उभरा । इसके अलावा
' सिमी ' जमार-ए. इस्लाम और इस्से जुडे अन्य संगठनों ने आतंक की एक नई
कहानी लिखी जो अब भी जारी है । भारत मे भी
कई इस्लामिक आतंकवादी संगठन आतंक फैलाते रहे हैं । इन्हें उकसाने मे हमारे पडोसी
देश पाकिस्तान का पूरा पूरा सहयोग रहा है | पुलवामा हमला भी इसी बात का परिचायक है
|
दर-असल अपने अपने राजनीतिक हितों के लिए प्र्त्यक्ष या परोक्ष रूप से
समर्थन देने का परिणाम यह निकला कि पूरे विश्व में आतंकवाद का एक जाल सा बिछ गया
और समय के साथ इन सभी संगठनों के उद्देश्य भी बदलते चले गये । अब इनसे मुक्त हो
पाना मुश्किल लग रहा है । लेकिन यह असंभव भी नही है । इसके लिए जरूरी है कि विश्व
राजनीति मे कथनी और करनी में फर्क न हो ।
अब यह जरूरी हो गया है कि सभी देश ऐसे खतरनाक मंसूबों के विरूध्द एक्जुट
होकर सामने आऐं अन्यथा जब पांच साल के मासूम भी बंदूक लेकर धर्म के नाम पर खून
खराबे के लिए आने लगेंगे तो पूरी दुनिया का वजूद ही खतरे में पड जायेगा । इस भयावह
खतरे को हर कीमत पर यहीं पर रोकना बेहद जरूरी है । विश्व बिरादरी को यह समझना
जरूरी है कि मौजूदा आतंकी हमला बेशक भारत पर हुआ हो लेकिन समस्या पूरी विश्व की है
| दुनिया के ताकतवर देशों को सामने आकर प्रभावी भूमिका का निर्वाह करना ही होगा |
सही कहा, पर तथाकथित बड़े या फिर ताकतवर देश सिर्फ अपना हित देखते हैं, उन्हें दुनिया से कोई मतलब नहीं!
जवाब देंहटाएं