गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

घाटी मे जरूरी है कश्मीरी पंडितों की वापसी


( एल. एस. बिष्ट ) -कश्मीर् की शांत, खूबसूरत वादियां एक बार फिर चर्चा मे हैं । आतंक का दंश झेलती इस घाटी का माहौल इस बार किसी खून खराबे को लेकर नही बल्कि विस्थापित कश्मीरी पंडितों को दोबारा बसाये जाने के सवाल पर गर्म हो गया है । जब से सरकार ने घाटी मे कश्मीरी पंडितों को दोबारा बसाये जाने की बात कही है, अलगाववादी नेताओं ने आसमान सर पर उठा लिया है ।

घाटी मे सक्रिय लगभग सभी अलगाववादी गुटों का मानना है कि अगर कश्मीरी पंडित घाटी मे अपने पुश्तैनी घरों मे आना चाहें तो बहुत अच्छा है लेकिन उनके लिए अलग कालोनी बनाये जाने से इजराइल और फलस्तीन जैसे हालात पैदा हो जायेंगे । जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट हो या आल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेस के गिलानी सभी इसका एक स्वर से विरोध कर रहे हैं । जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के मुहम्मद यासीन मलिक ने तो यहां तक कहा है कि मुफ्ती मोहम्मद सईद अब यहां आर.एस.एस. के ऐजेंडे को लागू करने जा रहे हैं । उनका कहना है कि अगर सरकार न मानी तो वह आमरण अनशन पर बैठ जायेंगे ।

इस विरोध को देखते हुए यह तो स्पष्ट ही है कि कश्मीरी पंडितों को घाटी मे दोबारा बसाना सरकार के लिए आसान काम तो कतई नही दिख रहा । लेकिन दूसरी तरफ पिछ्ले 25 सालों से वनवास झेल रहे इन वाशिंदों को फिर इनके घरोंदों मे बसाना भी जरूरी है । आखिर यह कब तक दर-दर की ठोकरें खाते रहेंगे । सवाल यह भी कि आखिर क्यों ।

शरणार्थी शिविरों मे तमाम परेशानियों के बीच इनकी एक नई पीढी भी अब सामने आ गई है और वह जिन्होने अपनी आंखों से उस बर्बादी के मंजर को देखा था आज बूढे हो चले हैं । लेकिन उनकी आंखों मे आज भी अपने घर वापसी के सपने हैं जिन्हें वह अपने जीते जी पूरा होता देखना चाहते हैं । इधर केन्द्र मे भाजपा सरकार के सत्ता मे आने के बाद और फिर जम्मू-कश्मीर मे भाजपा की सरकार मे साझेदारी ने इनकी उम्मीदों को बढाया है । इन्हें लगने लगा है कि मोदी सरकार कोई ऐसा रास्ता जरूर निकालेगी जिससे वह अपने उजडे हुए घरोंदों को वापस जा सकेंगे ।

दर-असल घाटी मे कभी इनका भी समय था । डोगरा शासनकाल मे घाटी की कुल आबादी मे इनकी जनसंख्या का प्रतिशत 14 से 15 तक था लेकिन बाद मे 1948 के मुस्लिम दंगों के समय एक बडी संख्या यहां से पलायन करने को मजबूर हो गई । फिर भी 1981 तक यहां इनकी संख्या 5 % तक रही । लेकिन फिर आंतकवाद के चलते 1990 से इनका घाटी से बडी संख्या मे पलायन हुआ । उस पीढी के लोग आज भी 19 जनवरी 1990 की तारीख को भूले नही हैं जब मस्जिदों से घोषणा की गई कि कश्मीरी पंडित काफिर हैं और वे या तो इस्लाम स्वीकार कर लें या फिर घाटी छोड कर चले जाएं अन्यथा सभी की हत्या कर दी जायेगी । कश्मीरी मुस्लिमों को निर्देश दिये गये कि वह कश्मीरी पंडितों के मकानों की पहचान कर लें जिससे या तो उनका धर्म परिवर्तन कराया जा सके या फिर उनकी हत्या । इसके चलते बडी संख्या मे इनका घाटी से पलायन हुआ । जो रह गये उनकी या तो ह्त्या कर दी गई या फिर उन्हें इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पडा ।

इसके बाद यह लोग बेघर हो देश के तमाम हिस्सों मे बिखर गये । अधिकांश ने दिल्ली या फिर जम्मू के शिविरों मे रहना बेहतर समझा । इस समय देश मे 62,000 रजिस्टर्ड विस्थापित कश्मीरी परिवार हैं । इनमे लगभग 40,000 विस्थापित परिवार जम्मू मे रह रहे हैं और 19,338 दिल्ली मे । लगभग 1,995 परिवार देश के दूसरे हिस्सों मे भी अपनी जिंदगी बसर करने को मजबूर हैं ।

अपने खूबसूरत घरोंदों को छोडने व पलायन की पीडा इस वादी की एक अनकही कहानी है । केंद्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कवि मोतीलाल साकी ने अपनी एक कविता मे उस दर्द को बयां किया है ।

" वे निकल भागे किधर किस ओर / यह उनके सगे भी नही जानते / सुना है कुछ रेत के टीलों पर जाकर बस गये / कुछ जान बचाने को टीले मे चले गये / कुछ झील , सरोवरों, बागों-चिनारों को छोड / चल दिये बियावानों की ओर / भूल गये वे कौन थे, कहां से आये थे / इस मकान मे रह गये बस कुछ ही लोग / भाग्य को कोसते, रो-रो कर दिन गुजारते ............"

इस दर्द को सिर्फ महसूस किया जा सकता है । आतंकवाद के चलते और अलगाववादी राजनीति के कारण ऐसे हालात बने ही नही कि यह लोग अपने घरों मे वापसी का साहस जुटा सकते । दर-असल यहां की अलगाववादी ताकतें चाहती ही नही कि कश्मीरी पंडितों को फिर यहां वापसी हो । वह अलग कालोनी का विरोध कर भी इसीलिए रहे हैं कि मुस्लिम आबादी के बीच अपने पुश्तैनी मकानों मे रहने का साहस अब यह नही उठा सकेंगे । लेकिन वह समझते हैं कि अगर अलग से कालोनी बनाई जाने लगी तो यहां आने व रहने मे इन्हें कोई विशेष भय नही होगा । फिर ऐसे मे इनकी मनमानी पर तो रोक लगेगी ही साथ मे राजनीतिक नुकसान होने की संभावना भी बनी रहेगी । आगे चल कर जनसंख्या का गणित भी इनके अलगाववादी इरादों पर नकेल लगा सकता है । इसी लिए यह नही चाहते कि घाटी मे दोबारा इनकी वापसी हो ।


अब यह सत्ता मे आई भाजपा सरकार को देखना है कि इस समस्या को कैसे हल किया जाए । लेकिन इतना जरूर है कि इनकी घर वापसी हर हालत मे सुनिश्चित की जानी चाहिए ।चाहे इसके लिए कितनी ही सख्ती क्यों न करना पडे । यह सिर्फ इनके ही हित मे नही है बल्कि यह देश के हित मे भी है । अगर ऐसा न किया गया तो आगे बहुत संभव है हालात इससे भी ज्यादा बदतर होने लगें । दूसरे धर्मों के लोगों का भी घाटी मे रहना देश के हितों के लिए बेहद जरूरी है । इस बात को शिद्दत से समय रहते महसूस किया जाना चाहिए । 

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