( एल. एस. बिष्ट ) -आज हम फ़िर समय के एक ऐसे
मोड पर खडे हैं जहां एक तरफ़ हमारे बिखरे सपनों, टूटी उम्मीदों की दुनिया है और
दूसरी तरफ़ बदले हालातों मे उम्मीद की एक हल्की किरण | आखिर क्यों हुए हम नाउम्मीद,
आज यह समझना जरूरी है जिससे हम नाउम्मीदी के गहरे अंधेरे से उबर सकें |
सच तो यह है कि हम यह कहते नही थकते कि गोरी
चमडी वाले अंग्रेजों ने अपने हितों के लिए वह सबकुछ किया जो उनके हित मे था |
किसानों के शोषण से लेकर आम आदमी के शोषण तक जो भी उन्हें ठीक लगा | यही कारण है
कि एक तरफ़ आम आदमी की जिंदगी बदहाल होती गई दूसरी तरफ़ अंग्रेजी साम्राज्य की
समृध्दि दिन दूनी रात चौगुनी बढ्ती गई | लेकिन क्या आजादी के बाद ऐसा नही हुआ |

देखा जाए तो किसान ही नही बल्कि आम आदमी की
स्थिती उत्तरोत्तर बदहाल हुई है | जो थोडी बहुत चमक-दमक दिखाई दे रही है, वह शहरी
मध्यमवर्गीय समाज की है जिसने येनकेन अपने को ऐसी स्थिती मे ला खडा किया है कि
विकास की बंदरबाट मे उसे भी कुछ मिलता रहे | दशकों के तथाकथित विकास की पड्ताल
करें तो यह बात पूरी तरह से साफ़ हो जाती है कि स्वतंत्रता के बाद इस देश के
हुक्मरानों ने आम आदमी के सपनों को छ्ला है | जो उम्मीदें आम आदमी ने स्वतंत्रता की पूर्व
संध्या पर आजाद भारत से लगाई थी, वह तिनकों की मानिंद बिखर कर रह गईं | आज उस पीढी
को यह दुख कहीं गहरे सालता है कि क्या इन्हीं दिनों के लिए और ऐसे भारत के लिए
उन्होने संघर्ष किया था |
गांधी जी के सपनों का क्या हुआ ? कहां गये
समाजवाद और समतामूलक समाज के मूल्य ? आदर्श, नैतिकता और समर्पण की वह धारा क्यों
सूख गई ? कहां से यकायक आ गया फ़रेब, भ्र्ष्टाचार, अनैतिकता और कुंठा का गहन अंधेरा
| कहा गया था कि दस वर्षों के अंदर 14 वर्ष तक के सभी नौनिहालों को नि:शुल्क
प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध करा कर शिक्षित कर दिया जायेगा, लेकिन क्या ऐसा हो सका |
इस बीच न जाने कितने शिक्षा आयोग और शिक्षा सुधार के लिए समितियां गठित की गईं,
लेकिन सपना अभी भी कोसों दूर है | बल्कि कुछ मामलों मे तो हालात और भी बदतर हुए
हैं | बाल शोषण घटने की बजाय लगातार बढता ही जा रहा है |
न्याय आधारित व्यवस्था के स्थान पर हमने ऐसी
कुव्यवस्था विकसित की कि आम आदमी न्याय की बात सोच भी नहीं सकता | धन बल और बाहुबल
ने न्याय को उन इमारतों मे घुसने ही नही दिया जहां से न्याय का उजाला फ़ैलना था |
न्याय का भ्रम जरूर बना हुआ है | शायद इसीलिए पुरानी पीढी के बचे खुचे बुजुर्ग यह
कहने लगे हैं कि इस अंधेरे से कहीं अच्छा था अंग्रेजों का शासन | आखिर अपने
स्वतंत्र राष्ट्र और अपनी ही बनाई प्रशासनिक व्यवस्था के प्रति इतनी घोर निराशा
क्यों ?
तमाम बुराइयों से जकडे इस विशाल लोकतंत्र का
यह बदरंग चेहरा न होता अगर स्वतंत्रता के बाद सत्ता मे आए लोगों ने ईमानदार प्रयास
किए होते | दर-असल हुआ यह कि जिन चेहरों को ससंद और विधानसभाओं मे पहुंचना था, वह
तो अपना सब् कुछ न्योछावर कर, सत्ता के लोभ मे न पड, चुपचाप बैठ गये लेकिन जिन्हें
सत्ता सुख का लोभ था, वह भला क्यों पीछे रह जाते |
इन स्वार्थी और धूर्त चेहरों ने बडी चालाकी
से ईमानदार और राष्ट्रहित मे प्रतिबद्द लोगों को हाशिए पर डाल दिया | गौर करें तो
पहले आम चुनाव से ही यह प्रकिया शुरू हो गई धी | धीरे-धीरे प्रत्येक चुनाव के साथ
इनकी संख्या बढ्ती गई और फ़िर शासन की बागडोर पूरी तरह से इन्हीं धूर्त लोगों के
हाथों मे आ गई | इन्होनें अपने निहित स्वार्थों के लिए जैसी व्यवस्था चाही, वह आज
हमारे सामने है और यही कारण है कि इस व्यवस्था मे ऐसे ही चेहते फ़ूल फ़ल रहे हैं |
राजनैतिक घटनाचक्र को देखे तो नेहरू का
प्रधानमंत्री बनना ही गरीब के सपनों के लिए पहला आघात था | दर-असल गांधी जी को इस
देश की सही समझ थी और वही थे जो खेत-खलिहान, कल-कारखानों और ग्रामीण भारत की
बुनियादी समस्याओं को जानते थे | नेहरू का गरीबी और गांवों से कोई रिश्ता था ही
नही | इसीलिए गांधी जी ने एक बार नेहरू जी से कहा था कि कोई भी फ़ैसला करना तो आंखे
बंद करके भारत के किसी गरीब आदमी की तस्वीर अपनी आंखों के सामने लाने की कोशिश
करना फ़िर अपने आपसे पूछना कि यह जो निर्णय लिया जा रहा है उससे उसकी आंखों मे चमक
आयेगी कि नही | लेकिन नेहरू जी ऐसा न कर सके | इसके फ़लस्वरूप विकास का जो ढांचा
खडा हुआ उसके तहत गरीब का हिस्सा नदारत रहा | रही समाजवाद की बात, वह पानी के
बुलबुले की तरह कब गुम हो गया, पता ही नही चला |
कुल मिला कर आज भी
ऐसी व्यवस्था कायम है जिसमे अमीर और ज्यादा अमीर, गरीब और गरीब होता जा रहा है |
आर्थिक उदारीकरण की हवा ने भी इन्हें खुशहाली की बजाय बदहाली ही दी है | यही कारण
है कि तमाम उपलब्धियों के बाबजूद एक बडा वर्ग बुनियादी जरूरतों से आज भी वंचित है
| अलबत्ता दूरदर्शन और सरकारी पोस्टर खुशहाली की रंगनियां बिखेर रहे हैं | आज हम
फ़िर एक मोड पर खडे हैं | अपने सपनों की सरकार चुनने | फ़ैसला कुछ भी हो, दुआ करें
कि देश की गाडी अब सही पटरी पर चले औरे आम आदमी के बिखरे सपने पूरे हो सकें |
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