कुछ भी कहिऐ इन आम चुनावों ने फेसबुक का मजा किरकिरा कर दिया है । प्रेमरस में डूबी कविताएं जिन्हें पढ कर मन कुलांचें भरने लगता था दिखाई देनी बंद हो गई । विरह की आग में जलते गीतों की तपिश भी महसूस नही हो रही । पता नही कहां खो गईं विरह की वेदना । मित्रों की सारी कल्पना शक्ति और उर्जा चुनाव के घिसे पिटे चुनावी बुलेटिनों तक सीमित हो कर रह गई है । लेकिन तमाम कसरतों के बाबजूद एक अदद प्र्धानमंत्री की तलाश अब भी जारी है ।
मित्रों की लेखनी से उपजे उदगारों के आधार पर जो कुछ निष्कर्ष निकले हैं उंनके अनुसार यह कहा जा सकता है कि चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में सबसे ऊपर के पायदान पर खडे मोदी जी के आलोचकों की संख्या भी कम नही । उनके अनुसार अगर मोदी प्र्धानमंत्री बने तो देश टूट जाएगा । देश मे दंगे ही होते रहेगें । धर्मनिरपेक्षता का तमगा लगाये उनके आलोचक उन्हें ठंडा पानी पी पी कर 'फेकू' , बड्बोला, और साम्प्र्दायिक जैसे तमाम श्ब्दों से सुशोभित कर रहे हैं । और कुछ तो सर्वेक्षण को ही झूट का पुलिन्दा मान रहे हैं ।

अब बचे ईमानदारी का आयकन बने केजरीवाल जी । सबसे ज्यादा दुर्गत उन्ही की हो रही है । कोई भगोडा तो कोई बहुरूपिया तो कोई अति महत्वाकांक्षी कह रहा है । उंनके खांटीपन को भी बेबकूफी का लेबल लगा दिया गया है ।जिस झाडू ने सत्ता पर बैठाया उसी झाडू को लेकर अब लोग उन्हे तलाश रहे हैं कहीं मिल तो जाएं। कम से कम फेसबुक पर मित्रों की पोस्ट पढ् कर तो ऐसा ही लगता है । उंनके किए वादों की फेसबुक पर अच्छी पोस्ट्मार्टम भी हो रही है । गुजरात जाकर तो उन्होनें अपनी गत और बिगाड दी । अपना तो बच गए दिल्ली , लखनऊ और इलाहाबाद में साथियों की धुलाई करवा दी ।

फेसबुक पर मित्र तलवारें भांज रहे हैं । युद्ध की स्थिती बनी हुई है । अपने अपने दलों के समर्थन में उठा पटक चल रही है । लेकिन सवाल जहां का तहां कि सर्व गुण सम्पन्न, प्र्धानमंत्री मिलेगा कहां से । कम से कम फेसबुक में तो नही मिल रहा । अब भय सताने लगा है कि कहीं प्र्धानमंत्री भी बाहर से आयात न करना पडे । बहरहाल अगर कहीं मिलें तो हमे भी जरूर बताईगा । चिंता हमे भी है ।
सम्पर्क :
एल.एस.बिष्ट,
11/508, इंदिरा नगर,
लखनऊ – 16
मो. 9450911026
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