{ एल. एस. बिष्ट } - देश में बढती
बलात्कार की घटनाओं और फिर पीड़िता द्वारा आत्महत्या कर लेने का खौफनाक सच कब खत्म
होगा , कह पाना मुश्किल है लेकिन इतना जरूर है कि इसके पीछे हमारी पारिवारिक व
सामाजिक सोच कम जिम्मेदार नहीं ।
चंद महानगरों में बेशक थोड़ा स्थिति बदली हो लेकिन हमारे छोटे शहरों ,
गांव-कस्बों में आज भी जब कोई लड़की लुटी पिटी किसी तरह साहस बटोर कर अपने घर की
चौखट पर कदम रखती है तो उसे अक्सर सुनाई देते हैं वे शब्द जो उसे अंदर तक हिला
देते हैं “ कलमुही तू मर क्यों न गई “ बेशक यह शब्द किसी मां की बेबसी , खीज और
सामाजिक भय के गर्भ से निकलता हो लेकिन दरअसल लड़की को अंदर तक भेंद जाते हैं ।

सवाल उठता है कि अगर परिवार से उसे
भावनात्मक व मानसिक संबल मिला होता तथा समाज की नजरें उसे ही कटघरे मे न खड़ा कर
रही होती तो क्या वह ऐसा करती , शायद नहीं । यही कारण है कि शायद ही कभी किसी
बलात्कारी ने आत्मग्लानी में आत्महत्या की हो । हमेशा पीड़ित लड़की ही इसका शिकार
बनती है । जब तक यह सोच नही बदलेगी हमेशा लड़की ही आत्महत्या जैसे विचार का शिकार
बनती रहेगी ।
एल.एस.बिष्ट,
11/508, इंदिरा नगर,
लखनऊ- 226016
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