
वैसे देखा जाए तो उच्चतम न्यायालय के एक आदेशानुसार रात 10 बजे के बाद आतिशबाजी नही की जानी चाहिए । लेकिन हमारे देश मे शायद ही कोई इसका पालन करता हो । घटना की तह पर जाएं तो इसके पीछे दो समूहों के बीच आतिशबाजी का मुकाबला होना ही एक बडे कारण के रूप मे सामने आया है । एक दूसरे से बेहतर आतिशबाजी की होड इस कदर हावी होती है कि इससे आवाज का शोर ही एक खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है । इस बारे मे कुछ स्थानीय लोगों का विरोध हमेशा से रहा लेकिन इसे अनसुना किया जाता रहा । अंतत: यह लापरवाही इस हादसे के रूप मे सामने आई ।
देवी मंदिर का यह हादसा कोई पहली घटना नही है । हमारे तीर्थस्थलों, धार्मिक स्थानों व पर्व विशेष पर पहले भी इस तरह की घटनाएं कई बार हो चुकी हैं । कहीं भीड के दवाब मे भगदड का होनी दुर्घटना का कारण बनती है तो कहीं दूसरे कारणों से हादसे होते हैं और सैकडों लोगों को अपनी जान गंवानी पडती है ।
दक्षिण भारत के मंदिरों मे आतिशबाजी की पुरानी परंपरा रही है लेकिन आस्था के चलते शायद ही कभी नियमों का समुचित पालन किया जाता रहा हो । छोटी मोटी घटनाओं को नजर-अंदाज करते रहना भी इस बडे हादसे का कारण बना । 2013 मे यहां एक पटाखा कारखाने मे ऐसा ही हादसा हुआ था जिसमे सात लोगों की मौत हुई थी । 2011 मे भी त्रिचूर की एक पटाखा फैक्टरी मे आग लगने के हादसे मे 6 लोगों को जान गंवानी पडी थी । इसी वर्ष शोरानपुर मे भी ऐसा ही हादसा हुआ और 13 लोग काल के ग्रास बने । 1952 के उस हादसे को लोग अभी तक भूले नही हैं जब प्रसिध्द सबरीबाला मंदिर मे पटाखों के कारण आगे लगने से 68 लोगों की जाने गई थीं । यानी इस तरह के हादसे होते रहे थे लेकिन कोई सबक लेने की जहमत किसी ने नही उठाई ।
यही नही, हमारे धार्मिक स्थलों व विशेष धार्मिक पर्वों पर बदइंतजामी के कारण होने वाली भगदड के कारण भी हादसे होते रहे हैं । हमारे कुंभ मेले तो न जाने कितनी बार इन दर्दनाक हादसों के गवाह बने हैं । 7 मार्च 1997 को अजमेर दरगाह मे उर्स के अवसर पर हुई भगदड , अप्रैल 2010 मे हरिदार मे शाही स्नान के समय हुई भगदड , 10 फरबरी 2013 को इलाहाबाद कुंभ मेले मे रेलवे स्टेशन मे एक रेलिंग टूट जाने से जो हादसा हुआ तथा 2014 मे दशहरा के अवसर पर पटना गांधी मैदान मे वह दर्दनाक हाद्सा जिसकी भगदड मे अधिकांश महिलाएं व बच्चों को अपनी जान से हाथ धोना पडा था को भला कौन भूल सकता है । वैसे इस प्रकार के हादसों की लंबी फेहरिस्त है ।
इस तरह के हादसों के कारणों की तह पर जाएं तो बद्इंतजामी ही इसका एकमात्र कारण उभर कर सामने आती है । जहां लाखों लोग एकत्र हों वहां सुरक्षा व बचाव के जो इंतजाम किये जाने चाहिए वह नदारत ही रहते हैं । यहां तक कि स्थानीय प्रशासन भीड के इतने बडे जमावडे की गंभीरता को भी समझने मे असमर्थ ही दिखाई देता है । लाखों लोगों की भीड के लिए सुविधाजनक आवागमन जरूरी होता है | इसमे थोडी सी भी चूक दुर्घ\टना को न्योता दे सकती है | अधिकांश मामलों मे बडी भीड के प्रवेश व निकासी की उचित व्यवस्था न होने के कारण दुर्घटनाएं हुई हैं | मंदिर या धार्मिक स्थ्ल के पास भीड. का उचित और प्रभावी नियंत्रण बहुत जरूरी है अक्सर इसमे चूक होने की संभावना बनी रहती है | इस घट्ना मे आतिशबाजी से जुडे खतरे को कभी महसूस ही नही किया गया और इसका ही परिणाम रहा कि इतने मासूम लोगों को अप्नी जान गंवानी पडी ।
अब यह जरूरी है कि इस प्रकार के सार्वजनिक मेलों, उत्सवों तथा धार्मिक पर्वों पर सभी जरूरी सुरक्षा उपाय पहले से ही कर लिए जाएं | आपातकालीन व्यवस्था का होना भी जरूरी है | हमें यह सीख लेनी ही होगी कि यह सभी घटनाएं बदइंतजामी व प्रशासनिक भूलों का ही परिणाम रही हैं | इन्हें आसानी से रोका जा सकता था | आगे ऐसा न हो इस पर गंभीरता से सोचा जाना जरूरी है तथा ऐसे अवसरों के लिए एक त्रुटिविहीन तंत्र विकसित किया जाना चाहिए |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें