
सवाल उन लोगों पर भी जो इस द्र्श्य के महज तमाशबीन
बने रहे | उनमे से किसी के भी थोडे प्रयास से उसे मदद मिल सकती थी | लेकिन शायद यह
द्र्श्य भी उनके लिए महज एक उत्सुकता भरा मनोरंजन बन कर रह गया | समाज की यह ह्र्दयहीनता भी आज कटघरे मे खडी है
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सवाल सिर्फ़ पत्रकार या तमाशबीनों पर ही क्यों
? आए दिन लोग दुर्घटना मे घायल पडे लोगों की मदद करने की बजाए वीडियो बना कर
फ़ेसबुक पर वायरल कर लाइक व कमेंट लूट रहे हैं | यहां तक कि आखिरी सांस लेते,
जिंदगी से जूझते इंसान का वीडियो बनाने मे भी कोई संस्कार या नैतिकता आडे नही आती
| सवाल उठता है कि आखिर तकनीक और मीडिया के इस दौर मे यह कैसी जागरूकता है जो
वीडियो बनाने को आतुर दिखाई देती है लेकिन उसकी उखडती सांसों को बचाने के लिए नहीं
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वीडियो बनाने और सोशल मीडिया मे छा जाने की
यह कैसी सोच के शिकार हम हो रहे हैं जो हमे अमानवीय व ह्र्दयहीन चेहरे मे तब्दील
कर रही है | तकनीक के माध्यम से हम करूणा
का ‘ शोर मचाने ‘ पर तो सबसे आगे दिखना चाहते हैं लेकिन सही अर्थों मे पीडित की
मदद करने मे सबसे पीछे खडे हैं | हमारी यह ह्र्दयहीनता, असंवेदनशीलता व निष्ठुरता
क्या भविष्य के लिए भय पैदा नही कर रही ?